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‘डॉन’ और ‘मास्टर माइंड’ को पकड़ना अब नामुमकिन नहीं, दुनिया के कई देश मिल कर रोकेंगे ये अपराध

Cyber crime: सारी दुनिया साइबर अपराधों से दुखी है। विरोध के बावजूद अंतरराष्ट्रीय संधि का मसौदा पारित किया गया है। अब बड़ी बाधा पार हो गई है और इसके लिए सभी देश मिलजुल कर कड़े नियम बनाएंगे।

नई दिल्लीAug 18, 2024 / 03:10 pm

M I Zahir

Cyber crime: बढ़ते साइबर अपराध रोकने के लिए दुनिया के देश एकजुट हो गए हैं अपराध के वैश्विक स्वरूप के कारण सुरक्षा एजेंसियों की बाधा दूर करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र की पहल पर साइबर क्राइम संधि के मसौदे को मंजूरी दे दी गई है।

नागरिकों की निगरानी

संधि के प्रारूप में जांच एजेंसियों को नए अधिकार देने और अंतरराष्ट्रीय समन्वय बढ़ाने के प्रस्ताव शामिल हैं। अब इस साइबर अपराध (Cyber crime) मसौदे को तीन महीने बाद होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किया जाएगा, जहां यह पारित होने की पूरी संभावना है। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता, टेक कंपनियां, अकादमिक संस्थाएं, औद्योगिक संगठन और अन्य हिस्सेदार विरोध कर रहे हैं। उन्हें डर है कि सरकारें इस संधि का बड़े पैमाने पर नागरिकों की निगरानी करने के लिए इस्तेमाल करेंगी।

मसौदा समिति बनाई

संयुक्त राष्ट्र साइबर क्राइम सम्मेलन ने दो सप्ताह के विचार-विमर्श के बाद पिछले दिनों साइबर क्राइम संधि का मसौदा सर्वसम्मति से पारित किया। करीब तीन साल से इसके प्रयास किए जा रहे थे। साइबर क्राइम संधि का उद्देश्य साइबर अपराध (Cyber crime) को अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से रोकना है। खासकर बाल यौन शोषण से संबंधित विजुअल और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों को रोकना इसका मकसद है। ऐसी संधि के अभाव में जांच एजेंसियां अब तक पंगु बनी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में 40 सदस्यों के अनुमोदन से इसे लागू किया जा सकेगा। इस संधि की पहल 2017 में रूस ने की थी। अमरीका और यूरोपीय देशों के विरोध के बावजूद संयुक्त राष्ट्र ने मसौदा समिति बनाई थी।

हैकिंग-इंटरसेप्शन पर होगी कार्रवाई

संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि का यह 41 पन्नों का मसौदा कानूनी तौर पर प्रवर्तन एजेंसियों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और साइबर अपराध से निपटने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी वाले देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए एक विधायी रूपरेखा का प्रस्ताव करता है। इसमें अवैध इंटरसेप्शन, मनी लॉन्ड्रिंग, हैकिंग और ऑनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री से निपटने के प्रावधान भी शामिल हैं।

20 साल में अपराध विरोधी पहली संधि

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) के कार्यकारी निदेशक घाडा वैली ने कहा कि इस सम्मेलन में मसौदे को अंतिम रूप दिया जाना एक ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि यह 20 वर्षों में पहली बहुपक्षीय अपराध-विरोधी संधि है। साइबर अपराध के विरुद्ध यह पहला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ऐसे समय में हुआ है जब साइबरस्पेस में खतरे तेजी से बढ़ रहे हैं।

मसौदे में क्या- क्या शामिल

  • संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को ऐसा कानून बनाना होगा जिसमें प्रसारित गैर-सार्वजनिक डेटा को इंटरसेप्ट करना अवैध होगा। डेटा को अनधिकृत रूप से नुकसान पहुंचाने, हटाने, बदलने या दबाने को अवैध बनाया जाएगा।
  • ऐसे कानून बनाने होंगे जो साइबर अपराध में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के उत्पादन, आयात, बिक्री या खरीद पर रोक लगाए। हैकिंग के लिए पासवर्ड और लॉगिन विवरण की खरीद-बिक्री को भी अवैध बनाया जाएगा।
  • सरकारों को बाल यौन शोषण सामग्री को फैलाने, संग्रहित करने या देखने के किसी भी प्रयास को अनिवार्य रूप से साइबर अपराध की श्रेणी में रखना होगा।
  • किसी बच्चे के विरुद्ध यौन अपराध करने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था करना और किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके अंतरंग चित्र या वीडियो को ऑनलाइन साझा करना भी साइबर अपराध माना जाएगा।

जांच एजेंसियों को प्रस्तावित शक्तियां

  • संधि में सरकारों को यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि जांच एजेंसियों को दी गई शक्तियां अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों के अनुरूप हों।
  • अधिकारी लोगों को 90 दिन तक डेटा संरक्षित रखने का आदेश दे सकेंगे। वे सेवा प्रदाताओं से डेटा साझा करने के लिए भी कह सकेंगे।
  • गंभीर अपराधों में डेटा एकत्र करने और रेकॉर्ड रखने के लिए अधिकारियों को कानूनी रूप से सशक्त बनाना होगा। गंभीर अपराध की परिभाषा में कम से कम चार साल की सजा का प्रावधान जरूरी होगा।
  • सरकारें निजी डेटा को अन्य सरकारों से तभी साझा करेंगी जब यह उनके घरेलू कानूनों के अनुसार हो। हालांकि, ऐसा करने के लिए सरकारें अपने कानूनों में संशोधन कर सकेंगी।

मुख्य चिंताः सरकार कर सकती है दुरुपयोग

  • मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस संधि का प्रारूप सरकार को ऐसी गतिविधियों को साइबर अपराध घोषित करने की अनुमति देती है जो उसके खिलाफ हो। इसमें कई गतिविधियां पत्रकारिता या सुरक्षा से संबंधित रिसर्च हो सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि पर 2022 में भारत सरकार के प्रजेंटेशन में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की विवादास्पद धारा 66ए के समान उपाय शामिल थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ‘असंवैधानिक’ बताते हुए रद्द कर दिया था।
  • इस संधि का मौजूदा पाठ डिजिटल युग में निजता की रक्षा करने वाले मानवाधिकार मानकों को कमजोर करता है। यह संधि सीमा पार निगरानी को सक्षम बना सकती है, जिससे सरकारें मानवाधिकारों का हनन कर सकती हैं।
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