बहरहाल, इस वर्ष COP-26 Summit के पहले दो दिन अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दुनिया के बड़े नेता इसमें शामिल हुए और उन्होंने बड़ी घोषणाएं कीं। जलवायु वार्ता में विशेषज्ञों की मानें तो पहले के COP Summit और इस बार COP Summit में यही बड़ा अंतर है।
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आमतौर पर दुनिया के बड़े नेता सम्मेलन के पहले हफ्ते में शामिल नहीं होते रहे हैं। वह बैठक के अंत में शामिल होते थे, जिससे जो भी मतभेद उभर रहे हों उन पर सहमति बनाई जा सके। हालांकि, विशेषज्ञों ने इस बार सम्मेलन में हुए कुछ फैसलों से काफी अहम माना है। इसके मुताबिक, दुनिया के सौ देशों ने शपथ ली कि वे मीथेन गैस का उत्सर्जन 2030 तक एक तिहाई कर देंगे। इससे पृथ्वी का तापमान कम रखने में मदद मिलेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े उत्सर्जक तो कसम उठाने वालों में शामिल ही नहीं हैं। इनमें, भारत, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया इस समझौते में शामिल नहीं हुए।
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इसके अलावा, भारत ने संकेत दिए हैं कि वह वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। हालांकि, ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में देशों से अपेक्षा की जा रही थी कि वे इस लक्ष्य को 2050 तक पूरा कर लें। वहीं, वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए पैसे की कमी को दूर करने को बड़ा फैसला लिया गया है। इसके तहत 45 देशों के 450 वित्तीय संस्थाओं व संगठनों द्वारा वर्ष 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य पाने के लिए 130 ट्रिलियन डॉलर की धनराशि जुटाने पर सहमति बनी है। इन लक्ष्यों में तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना भी शामिल है और ये धनराशि दुनिया की कुल वित्तीय सम्पदाओं का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है।
इस सम्मेलन में 130 से अधिक वैश्विक नेताओं ने वनों की कटाई और भूमि क्षरण को रोकने का संकल्प भी लिया है। जलवायु वार्ता में संयुक्त बयान का समर्थन ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सहित देशों के नेताओं द्वारा किया गया था, जो सामूहिक रूप से दुनिया के 90% जंगलों का हिस्सा हैं। हालांकि पहली बार यह प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। इससे पहले 2014 में न्यूयॉर्क में भी ऐसा ही करार हुआ था। इसमें भी 200 के करीब देशों ने 2020 तक वनों की कटाई आधी और 2030 तक पूर्ण पाबंदी का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह करार भी नाकाम साबित हुआ।
सम्मेलन में इस बार कई देशों ने स्वच्छ प्रौद्योगिकी में नए निवेश की घोषणा की है। साथ ही यूके, पोलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम समेत 40 से ज्यादा देशों ने 2030 तक प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और 2040 तक वैश्विक स्तर पर कोयला बिजली को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का ऐलान किया है। साथ ही कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को भी सार्वजनिक धन को रोकने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।