पुतिन के रहते डेरेक सावर की वापसी संभव नहीं क्या पुतिन की जीत नाटो (NAT)) को चने चबवा पाएगी ?
पुतिन (Putin ) ने अपनी जीत के बाद पहली बार कहा “श्रीमान नवालिनी ( Navalini )जेल में मर गये। जेल में और भी लोग मरते हैं। जेल में भी मौत आती है।” इस आशय की जानकारी मिलने के बाद मॉस्को टाइम्स ( Moscow Times ) के संस्थापक डेरेक सावर ( Derk Sauer ) का कहना है कि पुतिन ने पहली बार नवालिनी का नाम लिया है। नवालिनी के जीते जी पुतिन के मुंह से नवालिनी का नाम नहीं निकला। पुतिन जिस लहजे में नवालिनी के मरने का नाम ले रहे हैं, उससे लगता है कि जैसे नवालिनी की जेल में किसी प्राकृतिक आपदा के कारण मृत्यु हुई। दरअसल डेरेक सावर डच नागरिक हैं। उन्हें 24 फरवरी 2023 को पुतिन द्वारा यूक्रेन पर, नाजी खात्मे के पर ‘स्पेशल ऑपरेशन’ ( Special Operation ) के नाम पर हुए युद्ध के बाद, पुतिन की मीडिया गला घोंट नीति के कारण, अपनी मास्को टाइम्स की टीम के साथ, मास्को से भागना पड़ा था। उनका कहना है कि मेरी रूस वापसी पुतिन के रहते संभव नहीं है।
युद्ध के प्रभाव अब वैश्विक होते हैं
यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से इस विश्व में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सभी का जीवन प्रभावित हुआ है। युद्ध के प्रभाव अब युद्धरत देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं रहते हैं। युद्ध के प्रभाव अब वैश्विक होते हैं। अतीत को ध्यान में रखें तो 8 अगस्त 2008 में रूसी सैनिकों ने, ‘रूसी भाषाभाषी की रक्षा’ के बहाने, उत्तरी ओसेटिया और अबखाज़िया के अलगाववादी गणराज्यों के क्षेत्रों से जॉर्जिया पर आक्रमण कर दिया था। तब केवल पांच दिनों के दरम्यान रूसी विमानों ने जॉर्जिया के शहरों पर कम से कम एक सौ से अधिक हमले किए गए थे। यह बात अमानवीय व्यवहार था कि मूलतः नागरिक इलाकों पर बम गिराए गए थे, इस कारण बहुत से निर्दोष लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हुए थे। समय चक्र देखिए कि उसी समय से रूसी नियंत्रण में, दक्षिण ओसेशिया एक गैर-मान्यता प्राप्त गणराज्य बना हुआ है।
नाटो यह सब देखता रहा यहां यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि पुतिन के नेतृत्व में 2014 के वसंत में, रूस ने क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था। साथ ही यूक्रेन के पूर्व, दक्षिण और केंद्र में “पीपुल्स रिपब्लिक” बनाने की कोशिश की गई थी। “स्वतंत्रता आंदोलन” की आड़ में रूसी नागरिकों ने रूसी सैनिकों के समर्थन से डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था। नाटो अपने कान और जबान बंद किए बिना आंखें खोल कर यह सब देखता रहा। पुतिन ने 2021 के जाते जाते पश्चिमी देशों की नब्जें नाप ली थीं। वहीं 24 फरवरी, 2022 की शुरुआत में ‘विशेष ऑपरेशन’ के नाम पर यूक्रेन पर युद्ध थोंप दिया था। यह युद्ध आज भी जारी है। आज बीच बचाव या शांति के सब रास्ते शांत हैं। यूक्रेन अपने क्षेत्र पर रूस के कब्जे के चलते शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं है।
हिटलर ने 1930 के दशक में यही किया था लातविया में भी एक चौथाई रूसी भाषाभाषी हैं। नये कानून के अनुसार, लातविया में रह रहे रूसी भाषा भाषियों को लातवियाई भाषा की परीक्षा पास करना अनिवार्य है। पुतिन के चुने जाने के साथ ही नाटो की फौजें लातविया में नब्बे हजार सैनिकों, टैंको, युद्धपोतों और लड़ाकू विमानों, के साथ युद्धाभ्यास शुरू करने की तैयारी हो रही है। साथ ही फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों यूक्रेन की जमीन पर सैनिक भेजने की बात कह चुके हैं। पुतिन का कथन , जहाँ भी रूसी नागरिक या रूसी भाषाभाषी रह रहे हैं, उनके साथ यदि स्थानीय सरकार , सूअरों की तरह व्यवहार करेगी तो हम भी उस सरकार के साथ सूअर सा व्यवहार करेंगे।” इस बात को मीडिया में इस तरह कहा जा रहा है कि द्वितीय युद्ध से पूर्व जर्मनी की अर्थव्यवस्था ऊंचाई छू रही थी। हिटलर की आँखों में भी सपना था। हिटलर ने 1930 के दशक में यही किया था। उसने पड़ोसी देशों पर युद्ध थोप दिया था, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के पास खनिज तेल और गैस के भण्डार नहीं थे।
अब युद्ध और लंबा खिंचेगा रूस की अर्थव्यवस्था भी बहुत बेहतर रही है। पुतिन ने राष्ट्रपति बनने के बाद रूस की आर्थिक स्थिति को गर्त से उठाया था। अब यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों की लंबी चौड़ी आर्थिक पाबंदियों के बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था बेहतर नहीं है तो यह बहुत खराब स्थिति में भी नहीं है। इस समय आंकडों पर नजर डालें तो रूस की अर्थव्यवस्था अब पूर्णतः युद्ध की अर्थव्यवस्था बन गई है। रूस के पास खनिज तेल के साथ—साथ गैस के अकूत भण्डार हैं। इसी के सहारे अब युद्ध और लंबा खिंचेगा। रूस की सीमाओं से लगते किसी देश में रूस की ओर से कुछ सैनिक छेड़खानी हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।