अर्जेंटीना में जन्म, क्यूबा में क्रांति, बोलीविया में शहादत
दुनिया के इतिहास में अर्नेस्टो चे ग्वेरा (Ernesto Che Guevara) का नाम सुनहरे अक्षरों में छपा है। इनके फैन्स आपको सिर्फ अमेरिका या अफ्रीका में ही नहीं बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया में मिल जाएंगे। वो छात्रों-युवाओं के बीच एक फैशन आइकन के तौर पर भी जाने जाते हैं। दरअसल चे एक क्रांतिकारी थे। जिन्होंने क्रांति क्यूबा (Cuba) में की और अपनी शहादत बोलीविया में हासिल की। 14 जून सन् 1928 को अर्जेंटीना (Argentina) रोसारियो में हुआ था। उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की और डॉक्टर बने। 1950 के दशक में, चे ग्वेरा क्यूबा के पूर्व प्रधानमंत्री फिदेल कास्त्रो (Fidel Castro) और दूसरे क्रांतिकारियों से मिले और क्यूबा की क्रांति में शामिल हो गए। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध में अहम भूमिका निभाई, जिससे 1959 में क्यूबा में बतिस्ता सरकार का पतन हुआ। इस क्रांति के बाद ही क्यूबा में फिदेल कास्त्रो ने समाजवाद की स्थापना की थी और वहां के प्रधानमंत्री बने थे। 1976 में वो क्यूबा के राष्ट्रपति बने। हालांकि तब तक चे ग्वेरा की मौत हो चुकी थी।शोषण-उत्पीड़न और साम्राज्यवाद के घोर विरोधी थे Ernesto Che Guevara
चे (Ernesto Che Guevara) को दक्षिण अमेरिका में गुरिल्ला युद्ध के लिए भी याद किया जाता है। क्यूबा की क्रांति के प्रमुख नायकों में चे का नाम भी इतिहास में दर्ज है। उन्हें शोषण-उत्पीड़न और साम्राज्यवाद विरोध के लिए जाना जाता है। चे ग्वेरा अपने 5 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। चे की मां सेलिया एक राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। चे ने कई राजनीतिक किताबों को बचपन में ही पढ़ लिया था। उन्होंने मार्क्स और लेनिन के अलावा गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और जवाहरलाल नेहरू की जीवनी को भी पढ़ा था। अपनी भारत यात्रा के दौरान चे ने जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से मुलाकात भी की थी। अस्थमा की बीमारी होने के बाद भी चे बढ़चढ़ कर खेलों में हिस्सा लेते थे , वो एक अच्छे खिलाड़ी थे। वो एक अच्छे तैराक और फुटबॉल खिलाड़ी थे इसके अलावा वो रग्बी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे।
‘द मोटरसाइकिल डायरीज़’ है फेमस जीवनी
साल 1948 में चे ने मेडिकल की पढ़ाई के लिए ब्यूनस आयर्स विश्वविद्यालय (University of Buenos Aires) में एडमिशन लिया। लेकिन 1950 में वो अपनी मोटर साईकिल लेकर यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने इसी मोटरसाइकिल से 4,500 किमी की यात्रा अकेले की। फिर 1951 में अपने खास दोस्त अल्बर्टो ग्रेनाडो के साथ फिर घूमने निकल पड़े। ये यात्रा 8,000 किलोमीटर की थी जो उनके जीवन का एक अहम मोड़ साबित हुई। इस यात्रा में उन्होंने गरीबी, भुखमरी और बीमारी को बेहद करीब से देखा, जिसने उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख दिया। चे ने इस असमानता और शोषण को खत्म करने के लिए ही क्रांति की मशाल जलाई और ऐसी जलाई कि आज उनका नाम इतिहास के पन्ने में दर्ज हो गया। चे की ये मोटरसाइकिल यात्रा ‘मोटरसाइकिल डायरीज़ : नोट्स आन अ लैटिन अमेरिकन जर्नी’ (The Motorcycle Diaries: Notes on a Latin American Journey) साल 2003 में प्रकाशित हुई थी। आपको बता दें कि इस किताब पर ‘‘द मोटरसाइकिल डायरीज़“ नाम की फिल्म साल 2004 में बन चुकी हैं।क्रांति के बाद बनी सरकार में रहे मंत्री
क्यूबा में आई इस क्रांति के बाद जब फिदेल कास्त्रो प्रधानमंत्री बने तो चे उनके कार्यकाल में उद्योग मंत्री और नेशनल बैंक के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने क्यूबा की आर्थिक और सामाजिक नीतियों को आकार देने में मदद की।बोलीविया में क्रांति के दौरान मार दिए गए चे
चे ग्वेरा ने क्यूबा के अलावा ग्वाटेमाला (Guatemala) जैसे देशों में भी क्रांति लाने की कोशिश की। जहां वो कुछ हद तक सफल भी रहे। ग्वाटेमाला के अलावा उन्होंने कांगो (Congo) और बोलीविया में क्रांतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लिया लेकिन, इस बार बोलीविया (Bolivia) में उन्हें पकड़ लिया गया और 9 अक्टूबर 1967 को मार दिया गया।1959 में चे ने की थी भारत यात्रा
अर्नेस्टो चे ग्वेरा ने 1959 में भारत की यात्रा की थी। (Ernesto Che Guevara India Visit) उनकी +यात्रा क्यूबा की क्रांति के बाद उनकी कई अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं का हिस्सा थी। उन्होंने भारत में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की और भारतीय समाजवाद, संस्कृति और राजनीति के बारे में गहरी जानकारी ली। चे ग्वेरा ने भारत की कई जगहों का दौरा किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित हुए। उनकी इस यात्रा ने उन्हें एशियाई और अफ्रीकी देशों में क्रांतिकारी आंदोलनों को समझने में मदद की। चे ग्वेरा की भारत यात्रा ने उन्हें वैश्विक क्रांतिकारी आंदोलनों के संदर्भ में नई दृष्टि दी और उनकी विचारधारा को और मजबूत किया।टी-शर्ट्स और पोस्टर्स में कैसे मिली जगह?
चे ग्वेरा आज भी एक क्रांतिकारी प्रतीक के तौर पर माने जाते हैं। चे ग्वेरा की छवि टी-शर्ट पर आने की कहानी भी एक अहम ऐतिहासिक घटना है। 1960 में, अल्बर्टो कोर्डा नाम के क्यूबा के एक फोटोग्राफर ने चे ग्वेरा की एक फेमस तस्वीर खींची थी जिसे ‘गुएरिलेरो हीरोइको’ (Guerrillero Heroico) कहा जाता है। ये तस्वीर चे ग्वेरा के विद्रोही और क्रांतिकारी प्रतीक के तौर पर फेमस हो गई। फिर 1970 के दशक में आयरलैंड के एक कलाकार जिम फिट्ज़पैट्रिक ने इस तस्वीर का स्टाइलाइज्ड संस्करण बनाया, जो कि जल्दी ही एक आइकॉनिक छवि बन गई। बस फिर क्या था ये छवि टी-शर्ट, पोस्टर, और दूसरे मर्चेंडाइज पर दिखाई देने लगी, जिससे चे ग्वेरा की छवि वैश्विक स्तर पर एक क्रांतिकारी और विरोध के प्रतीक के तौर पर स्थापित हो गई। इस छवि ने युवाओं और विद्रोही समूहों के बीच एक नई पहचान बनाई और आज भी ये छवि क्रांति और विरोध का प्रतीक मानी जाती है।