क्या है NATO? (What is NATO)
NATO एक सैन्य संगठन है। नाटो का पूरा नाम उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी (North Atlantic Treaty Organization) है। इसका गठन 1949 में बेल्जियम के ब्रुसेल्स में किया गया था। ब्रुसेल्स (Brussels) में ही इसका मुख्यालय है। उस वक्त अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस समेंत 12 देशों ने मिलकर इसका गठन किया था। बता दें कि नाटो के पास खुद की सेना नहीं है बल्कि इसकी सेना इसमें शामिल देशों की सेना होती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी सदस्य देश पर हमला होता है और नाटो उस देश में लड़ाई के लिए उतरता है तो इसका मतलब है कि नाटो में शामिल सभी देशों की सेना उस लड़ाई में एक होकर उतरेगी। यानी तब वो इस देश की सेना ना होकर नाटो की सेना होगी।
क्यों हुआ था नाटो का गठन (Why Was NATO formed)
अब सवाल उठता है कि नाटो का गठन क्यों हुआ था। तो इस सैन्य संगठन का सबसे बडा़ उद्देश्य था साम्यवादी राज्यों के समूह के विस्तार को रोकना। दरअसल साल 1948 में जब सोवियत संघ ने बर्लिन की नाकेबंदी कर दी थी तो पश्चिमी यूरोपीय पूंजीवादी देशों को इन साम्यवादी देशों के विस्तार से डर लगने लगा था। इसलिए इन्हें रोकने के लिए और यूरोपीय देशों की सुरक्षा के लिए इस NATO के गठन का प्रस्ताव रखा गया जो अमेरिका की तरफ से रखा गया था। इसके बाद अमेरिका (USA) के नेतृत्व में NATO का गठन हुआ था। नाटो के गठन के सोवियत संघ को काफी मिर्ची लगी थी उसने अपना गुस्सा निकालने के लिए वारसा पैक्ट (WARSAW Pact) नामक संधि कर ली थी।
क्या है वारसा पैक्ट संधि (WARSAW Pact)
1955 में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वू देशों ने एक गठबंधन किया जिसे वारसा पैक्ट (WARSAW Pact) कहा गया। इस गठबंधन में सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया शामिल थे। इसका सबसे अहम काम था कि वो नाटो में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करे और इसी के लिए इसका गठन हुआ था। हालांकि 1968 में अल्बानिया इस समझौते से पीछे हट गया था और पूर्वी जर्मनी 1990 में हट गया था।
कौन से देश हैं नाटो में शामिल (NATO Member Countries)
नाटो के गठन के समय इसमें 12 देश शामिल थे लेकिन आज की तारीख में नाटो के 32 सदस्य हैं। नाटो में शामिल देश कब हुए थे शामिल
अल्बानिया (2009) बेल्जियम (1949) बुल्गारिया (2004) कनाडा (1949)
क्रोएशिया (2009) चेकिया (1999) डेनमार्क (1949)
एस्तोनिया (2004) फ़िनलैंड (2023) फ़्रांस (1949)
जर्मनी (1955) ग्रीस (1952) हंगरी (1999)
आइसलैंड (1949) इटली (1949) लातविया (2004)
लिथुआनिया (2004) लक्ज़मबर्ग (1949) मोंटेनेग्रो (2017) नीदरलैंड (1949)
उत्तरी मैसेडोनिया (2020) नॉर्वे (1949) पोलैंड (1999) पुर्तगाल (1949)
रोमानिया (2004) स्लोवाकिया (2004) स्लोवेनिया (2004) स्पेन (1982)
स्वीडन (2024) तुर्किये (1952) यूनाइटेड किंगडम (1949) संयुक्त राज्य अमेरिका (1949)
यूक्रेन NATO में कब शामिल हो रहा है?
यूक्रेन (Ukraine In NATO) के नाटो में शामिल होने को लेकर संगठन के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा है कि ये तो निश्चित है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनेगा लेकिन तब तक नहीं बनेगा जब तक उसका रूस से युद्ध नहीं खत्म हो जाता। बता दें कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन को जल्द से जल्द नाटो में शामिल करने के लिए कहा है।
नाटो में शामिल है भारत ?
भारत के नाटो (India In NATO) में शामिल ना होने के एक नहीं कई कारण हैं। जिसमें भारत की सामरिक स्वायत्ता, क्षेत्रीय गतिशीलता और रणनीतिक विचार शामिल हैं। भारत शुरूआत से ही स्वतंत्रता और गतिशीलता का पक्षधर रहा है। वारसा संधि के दौरान भी भारत ने ऐसे किसी भी संगठन में शामिल होने से मना कर दिया था जो भारत की गुटनिरपेक्षता को प्रभावित करती है। नाटो में शामिल होने का भारत एक नकारात्मक पहलू ये मानता है कि इस संगठन में शामिल होकर वो दुनिया भर के संघर्षों को भागीदार माना जाएगा। किसी भी देश में उसे अपने सैनिक भेजने होंगे जिससेे सैनिक और हथियार दोनों की खपत होती है और सैनिक बेवजह मारे जाते हैं जो भारत बिल्कुल नहीं चाहता है।
भारत को शामिल करने के लिए नाटो ‘प्लस’
दरअसल अमेरिका अपने सहयोगियों को नाटो में लाना चाहता है लेकिन ये सीधे तौर पर नाटो के सदस्य नहीं कहे जाएंगे। इसके लिए नाटो ‘प्लस’ (NATO Plus) का टर्म यूज किया गया है। यानी ये देश जरूरत पड़ने पर हथियार, इंटेलिजेंस और दूसरी तरह से नाटो या उसके देश की मदद कर सकते हैं। अमेरिका इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और इजराइल को शामिल करना चाहता है। अमेरिका ने भारत को भी शामिल करने की बात कही है। अमेरिका चाहता है कि भारत नाटो प्लस का हिस्सा बने और चीन जैसे देशों का मुकाबला करे। हालांकि नाटो प्लस में भी भारत का शामिल होना उसके लिए मुश्किलों से भरा होगा। क्योंकि इसके लिए भारत को अपनी स्वायत्ता से समझौता करना होगा जो भारत कभी भी किसी कीमत पर हरगिज़ नहीं चाहेगा।