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कोरोना से भी खतरनाक ये है ये वायरस, अब ग्लेशियर को पिघलने से रोकेगा

यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान विभाग की लौरा पेरिनी ने कहा, फिलहाल हम इस वायरस (Virus) के बारे में ज्यादा नहीं जानते, लेकिन हमें लगता है कि ये शैवाल (Algae) फैलने के कारण पिघलने वाली बर्फ को कम करने के लिए काम आ सकते हैं। बड़े साइज के बावजूद इस वायरस को आंख से सीधे नहीं देखा जा सकता।

नई दिल्लीJun 08, 2024 / 09:16 am

Jyoti Sharma

Virus found in Greenland will prevent glaciers from melting

वैज्ञानिकों को कोरोना (COVID-19) से भी ज्यादा खतरनाक वायरस मिला है। ये वायरस डेनमार्क के ग्रीनलैंड में जमी बर्फ की शीट में मिले हैं। ये ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण बर्फ पिघलने की रफ्तार धीमा कर सकते हैं। ये वायरस (Virus) बर्फ की शीट पर जमा शैवाल खाते हैं। अक्सर शैवाल के कारण बर्फ तेजी से पिघलने लगती है। साइंस डेली की रिपोर्ट के मुताबिक डेनमार्क (Denmark) की आरहूस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के माइक्रोबायोम जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया कि ग्रीनलैंड (Greenland) में पहली बार इतने बड़े वायरस मिले हैं। इनमें सामान्य वायरस के मुकाबले काफी बड़ा जीनोम अनुक्रम है। ये आम तौर पर समुद्र में शैवाल को संक्रमित करते हैं। 
यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान विभाग की लौरा पेरिनी ने कहा, फिलहाल हम इस वायरस (Virus) के बारे में ज्यादा नहीं जानते, लेकिन हमें लगता है कि ये शैवाल (Algae) फैलने के कारण पिघलने वाली बर्फ को कम करने के लिए काम आ सकते हैं। बड़े साइज के बावजूद इस वायरस को आंख से सीधे नहीं देखा जा सकता।

अलग-अलग रंग की बर्फ के सैंपल में मिले

शोधकर्ताओं को दो अलग-अलग रंग की बर्फ के सैंपलों के अध्ययन में बड़े वायरस का पता चला। जिन सैंपलों में शैवाल ज्यादा थी, उनमें इन वायरस की मात्रा ज्यादा थी। बड़े वायरस अब भी रहस्यमय जीव हैं। ये बाकी वायरसों से काफी अलग होते हैं। इनमें कई एक्टिव जीन होते हैं, जो इन्हें डीएनए रिपयेर, प्रतिकृति (रेप्लीकेशन) और प्रतिलेखन (ट्रांसक्रिप्शन) में सक्षम बनाते हैं।

आकार 2.5 माइक्रोमीटर तक

आम तौर पर वायरस बैक्टीरिया से बहुत छोटे होते हैं। सामान्य वायरस का आकार 20-200 नैनोमीटर होता है, जबकि सामान्य बैक्टीरिया 2-3 माइक्रोमीटर का होता है। यानी सामान्य वायरस बैक्टीरिया से करीब 1,000 गुना छोटा होता है, लेकिन बड़े वायरस का आकार 2.5 माइक्रोमीटर तक हो सकता है। फिर भी ये आंखों या सूक्ष्मदर्शी से दिखाई नहीं देते। इन्हें सिर्फ विशेष उपकरणों से देखा जा सकता है।
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