चीन ने तालिबान नेताओं को यात्रा में 90 की जगह 180 दिन की समय सीमा करने का प्रस्ताव भारत की अध्यक्षता वाली कमेटी के सामने रखा था। चीन के दबाव के बाद भी बाकी देशों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से मना कर दिया। सदस्य देशों का मानना है कि तालिबान पर फिलहाल नजर रखने की जरूरत है। यात्रा में छूट की समय सीमा बढ़ाने के लिए चीन ने ऐसे समय में मांग की है जब तालिबान ने न्यूयार्क में जारी मौजूदा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने लिए जगह मांगी है।
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तालिबान ने इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव को पत्र भी लिखा है। साथ ही, अपने प्रवक्ता सुहैल शाहीन को संयुक्त राष्ट्र में अपना स्थायी राजदूत भी नियुक्त किया है। तालिबान की इस मांग को अब संयुक्त राष्ट्र की समिमि के समक्ष रखा जाएगा। रूस के स्थायी राजदूत वैसिली नेबेनजिया ने कहा कि तालिबान से प्रतिबंध हटाना फिलहाल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में नहीं है।
रूस ने चीन के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में ऐसा कुछ नहीं है। इसको लेकर हड़बड़ी करने की भी जरूरत नहीं है। किसी भी कदम को उठाने से पहले उस पर गहन विचार विमर्श करना जरूरी है। तालिबानी नेताओं की यात्रा प्रतिबंधों से मिली छूट 20 सितंबर को खत्म हो गई है। चीन इसे बढ़ाकर 22 दिसंबर तक किए जाने की मांग कर रहा था।
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वहीं, तालिबान सरकार में खुद इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले दिनों खबर आई थी कि तालिबान में दो गुट बन गए हैं और कुर्सी के लिए एक दूसरे की जान लेने पर उतारू है। एक गुट हक्कानी नेटवर्क के साथ मिल गया है। ब्रिटिश मैग्जीन ने इस पर एक रिपोर्ट भी है।
मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि सत्ता के लिए हो रहे इस संघर्ष में तालिबान के दो गुटों के समर्थक आपस में लड़ पड़े। एक गुट का साथ हक्कानी नेटवर्क ने दिया, जिसके बाद अखुंदजादा और बरादर को नुकसान उठाना पड़ा। यही नहीं, मैग्जीन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हाल ही में तालिबान के दोनों गुटों के बीच बैठक हुई थी। इस बैठक में हक्कानी नेटवर्क के भी कई नेता शामिल थे।
मैग्जीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इस बैठक के दौरान एक समय ऐसा भी आया, जब हक्कानी नेता खलील उल रहमान हक्कानी अपनी कुर्सी से उठा और उसने मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर पर मुक्के बरसाने शुरू कर दिए। बताया जा रहा है कि मुल्लाह बरादर लगातार तालिबान सरकार के कैबिनेट में गैर तालिबानियों और अल्पसंख्यकों को भी जगह देने का दबाव बना रहा था, जिससे दुनिया के दूसरे देश तालिबानी सरकार को मान्यता देने के लिए आगे बढ़े।