हजम नहीं हो रहा इलाज वाला तर्क
यह समझना मुश्किल है कि दक्षिण अफ्रीका को नियमों में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी। क्योंकि बीमारियों के इलाज के लिए जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग तो अब भी हो ही रहा है। हाल ही में, सोमैटिक जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग करके सिकल सेल रोग का प्रभावी इलाज विकसित किया गया है। इसके लिए भ्रूण में आनुवांशिक संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होती है। सोमैटिक जीन एडिटिंग तकनीक में रोग के लिए जिम्मेदार मानव कोशिकाओं में बदलाव किया जाता है। इसीलिए इलाज के नाम पर भ्रूण में ही संशोधन करने की बात हजम नहीं हो रही है। भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान की आशंका
- इंसान पर जीन एडिटिंग तकनीक के इस्तेमाल से एक तरफ गंभीर रोगों से मुक्ति मिलने की उम्मीद है तो दूसरी ओर इससे मानवता के साथ छेड़छाड़, भेदभाव और सामाजिक असमानता बढ़ने की आशंका भी है।
- इस तरह के प्रयोगों से अनजाने में भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा, इस तकनीक का उपयोग करके ‘डिजाइनर बेबी’ बनाने की संभावना भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
- यदि जीएम सरसों या जीएम बैंगन की तरह जीएम इंसान की भी फॉर्मिंग होने लगे तो आश्चर्च नहीं। अभी तक इंसान अपनी प्रकृति के अनुसार बच्चे पैदा करता रहा है। उस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रहता।
चीन में पैदा हो चुकी हैं जीएम लड़कियां
- सबसे पहले नवंबर 2018 में चीन में जीन एडिटिंग के बाद शिशुओं को जन्म देने की खबरें प्रकाशित हुई थी। एक वैज्ञानिक ने शिशुओं में एचआइवी जैसे वायरस का प्रतिरोधक विकसित करने का दावा किया था।
- जब उनके प्रयोग के बारे में लोगों को पता चला तब तक जुड़वां लड़कियां पैदा हो चुकी थीं और अगले साल एक तीसरा बच्चा भी पैदा हुआ। तीनों बच्चों का भाग्य कैसा रहा, इस बारे में रहस्य बना हुआ है।
- 2018 के खुलासे के तत्काल बाद, मानव जीनोम एडिटिंग पर अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन की आयोजन समिति ने इस शोध की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया था।
- सम्मेलन में उपचार के लिए जीनोम संशोधन का मार्ग प्रशस्त करने का आह्वान करते हुए सुरक्षित और कड़े मानदंड बनाने की बात कही गई, जिसमें सामाजिक प्रभाव पर ध्यान देना भी शामिल है।
- दक्षिण अफ्रीका ने जो नियमों में संशोधन किए हैं, उनमें व्यापक सामाजिक सहमति का पुराना मानक शामिल नहीं किया गया है। उस कारण आशंकाएं बढ़ गई हैं।
पत्रिका व्यू : मानवता रहे सर्वोपरि
दक्षिण अफ्रीका का यह कदम पूरी दुनिया के लिए नैतिक और सामाजिक चुनौतियां पेश कर सकता है। इस तकनीक के फायदों और नुकसानों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इसका उपयोग मानवता के हित में ही हो। कॉटन, बैंगन और सरसों में आनुवांशिक बदलाव के दुष्परिणाम सामने आए हैं लेकिन व्यावसायिक हितों के टकराने से इनका ठीक से अध्ययन भी नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यदि ‘जीेएम मानव’ पैदा करने की नई होड़ शुरू हो गई तो न सिर्फ हमारा भविष्य बल्कि, प्रकृति का कोप भी कल्पना से परे होगा।