Meta ने कहा- कोई सरकार इससे निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं हालांकि, टेक कंपनियों के इस समझौते का कितना असर होगा, इसे लेकर कई तरह की आशंकाएं भी सामने आने लगी हैं। बैठक से पहले Facebook और Instagram जैसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को संचालित करने वाली मूल कंपनी Meta के वैश्विक मामलों के अध्यक्ष निक क्लेग ने कहा कि हर कोई मानता है कि कोई भी टेक कंपनी, कोई भी सरकार या कोई नागरिक संगठन तकनीक के नापाक इस्तेमाल से निपटने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। ऐसे में यह समझौता काफी हद तक प्रतीकात्मक ही है।
कंपनियां नहीं रोकना चाहती ‘DeepFake’ कंपनियां DeepFake पर प्रतिबंध लगाने या हटाने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं। इसके बजाय समझौते में उन तरीकों की रूपरेखा दी गई है जिनका उपयोग वे भ्रामक एआइ सामग्री का पता लगाने और लेबल करने के लिए करेंगे जब इसे उनके प्लेटफार्मों पर बनाया या प्रसारित किया जाएगा।
ये है समझौता 1- समझौते में कहा गया कि कंपनियां एक-दूसरे के साथ उन सर्वोत्तम तरीकों को साझा करेंगी जिसका जिसका इस्तेमाल वे Deepfake वायरल होने करेंगी। कंपनियों ने कहा कि ऐसे मौकों पर ‘तेज और आनुपातिक प्रतिक्रियाएं’ की जाएगी।
2- समझौते में प्लेटफार्मों से ‘संदर्भ पर ध्यान देने और विशेष रूप से शैक्षिक, वृत्तचित्र, कलात्मक, व्यंग्यात्मक और राजनीतिक अभिव्यक्ति की सुरक्षा पर ध्यान देने’ का आह्वान किया गया है। 3- कहा गया कि कंपनियां अपनी नीतियों की पारदर्शिता पर ध्यान केंद्रित करेंगी और जनता को शिक्षित करने के लिए काम करेंगी कि वे एआइ जनित फेक कंटेंट के जाल में फंसने से कैसे बच सकते हैं।
AI से क्या है खतरा? 1- AI का इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति का फर्जी फोटो, ऑडियो या वीडियो इस तरह तैयार किया जा सकता है कि वह एकदम असली लगे। प्रमुख हस्तियों, राजनेताओं या अन्य हित धारकों के पुराने फोटो या आवाज का इस्तेमाल करते हुए ऐसा किया जा सकता है।
2- इसकी आशंका जताई जा रही है कि चुनाव को दौरान मतदाताओं को भ्रम में रखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए फेक कंटेंट बनाए जा सकते हैं। इसे सोशल मीडिया के सहारे प्रसारित करके चुनावी लाभ लेने का प्रयास किया जा सकता है।
3- वार्षिक सुरक्षा बैठक में समझौता ऐसे समय हुआ जब इस साल भारत सहित 50 से अधिक देशों में राष्ट्रीय चुनाव होने वाले हैं। बांग्लादेश, ताइवान, पाकिस्तान और हाल ही में इंडोनेशिया चुनाव हो चुके हैं।
चुनावों में होने लगा है AI का दुरुपयोग 1- AI जनित कंटेंट से चुनाव में हस्तक्षेप के प्रयास पहले ही शुरू हो चुके हैं। जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन की आवाज की नकल करने वाले एआइ रोबोकॉल ने पिछले महीने न्यू हैम्पशायर के प्राथमिक चुनाव में लोगों को मतदान करने से हतोत्साहित करने की कोशिश की थी।
2- नवंबर में स्लोवाकिया के चुनावों से कुछ ही दिन पहले , एआइ-जनरेटेड ऑडियो रेकॉर्डिंग में एक उम्मीदवार को बीयर की कीमतें बढ़ाने और चुनाव में धांधली की योजना पर चर्चा करते हुए दिखाया गया था। जैसे ही ये बातें सोशल मीडिया पर फैलीं, तथ्य-जांचकर्ताओं ने फैक्ट चेक करके इसे झूठा बताया।
3- राजनेताओं ने मतदाताओं के साथ संवाद करने के लिए एआइ चैटबॉट्स का उपयोग करना शुरू कर दिया है। कई विज्ञापनों में एआइ जनित फोटो का इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले दिनों पाकिस्तान में चुनाव परिणाम के बाद जेल में बंद इमरान खान का एआइ जनित भाषण वायरल किया गया था।
राजनेताओं को लेनी होगी जिम्मेदारी यूरोपीय आयोग के उपाध्यक्ष वेरा जौरोवा ने कहा कि एआइ से संबंधित समझौते में कई सकारात्मक तत्त्व शामिल हैं। ऐसा समझौता व्यापक नहीं हो सकता। राजनेताओं को एआइ का दुरुपयोग न करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। क्योंकि, चुनावों में एआइ का दुरुपयोग लोकतंत्र का अंत ला सकती है।
झूठे पोस्ट हटाने का दावा Meta का कहना है कि वह मतदान, मतदाता पंजीकरण, या जनगणना भागीदारी की तारीखों, स्थानों, समय और तरीकों के साथ-साथ किसी की नागरिक भागीदारी में हस्तक्षेप करने के लिए बनाई गई झूठी पोस्टों के बारे में गलत जानकारी को हटा देती है।
उपाय कम, दिखावा ज्यादा चुनावों में AI के दुरुपयोग का खतरा जितना बड़ा है, उससे निपटने के उपायों में उतनी सख्ती नजर नहीं आ रही है। दुनिया भर की सरकारों ने एक तरह से टेक कंपनियों के निहित हितों के आगे समर्पण कर दिया है। टेक कंपनियां भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपने व्यवसायिक हित साध रही हैं। फेककंटेंट पर रोक लगाने के उपाय कम और दिखावे ज्यादा किए जा रहे हैं। टेक कंपनियों का यह समझौता भी कहीं दिखावे की अगली कड़ी साबित न हो।