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Success story: ‘तुम भी नाँ ’…’इश्क़ को दिल से ज़ुबाँ तक ले आएगी ये रूमानी शायरी, पढ़ कर इस शायरा के हो जाएंगे दीवाने

Success story: ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नां,मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी नाँ । उर्दू दुनिया की एक अहम लिटरेरी सेलि​ब्रिटी का नाम है अंबरीन हसीब अंबर। उनकी पूरी दुनिया में लोकप्रियता और स्टारडम, किसी हीरोइन या मॉडल से कम नहीं है। आइए उनकी सक्सेस स्टोरी के बारे में जानते हैं। जैसा उन्होंने patrika.com को बताया:

नई दिल्लीAug 24, 2024 / 01:02 pm

M I Zahir

ambareen Haseeb amber

Success story: साहित्य जगत में भारतीय उप महाद्वीप का नाम रोशन करने वाली प्रमुख उर्दू शायरा हैं ।अंबरीन हसीब अंबर (Ambreen Haseeb Amber) का जन्म 23 जून 1979 को कराची में हुआ। पिता सहर अंसारी उर्दू के नामी साहित्यकार हैं। उन्होंने मदार उलमी यूनिवर्सिटी कराची से यूनिवर्सिटी से पीएचडी की है।

सम्मोहन सा कर देती है शायरी

अंबरीन हसीब अंबर की शायरी साहित्य प्रेमी लोगों पर एक तरह का जादू-सम्मोहन सा कर देती है। जहां जहां उर्दू साहित्य है, वहां वहां उनकी शायरी पसंद की जाती है। patrika.com ने उनसे उनकी सक्सेस स्टोरी ( Success Story ) के बारे में बात की तो ये मालूम हुआ:

शायरी के अंदाज का अनुसरण

वे शायरी के साथ साथ गद्य और आलोचना भी बहुत अच्छा लिखती हैं। यही नहीं वो शायरा के साथ साथ टीवी एन्कर और मुशायरों की मंच संचालिका भी हैं। उन्हें मुशायरों की कामयाबी की गारंटी माना जाता है। उर्दू हिन्दी साहित्य प्रेमी लोगों की खास पसंद हैंं अंबरीन हसीब अंबर। बहुत सारे शायर और शायरा उन्हें आइडल मानते हैं और उनकी शायरी के अंदाज का अनुसरण करते हैं।

कानों में मधुर रस

साहित्यिक जगत जुनून की हद तक उनका दीवाना है। एक तरफ इस खूबसूरत शायरा की शायरी खूबसूरत है और उनका शायरी सुनाने और मंच संचालन का अंदाज़ भी बहुत खूबसूरत है। बहुत मिठास के साथ चुंबकीय आकर्षण के साथ शेर सुनाती हैं तो सुनने वालों को लगता है कि कानों में मधुर रस घुल रहा है। भारत, दुबई हो या कतर, अमेरिका हो या लंदन, हर देश में उनकी धूम है। उन्हें हाल ही में पाकिस्तान के राष्ट्रपति सम्मान से नवाज़ा गया है।


शायरी की किताबें

  • “दिल के उफ़क पर” (2012) * “तुम भी नां ” (2020)

उनकी कुछ पॉपुलर ग़ज़लें देखें:

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ

मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी नाँ
दे जाते हो मुझ को कितने रंग नए

जैसे पहली बार मिले हो तुम भी नाँ\

हर मंज़र में अब हम दोनों होते हैं

मुझ में ऐसे आन बसे हो तुम भी नाँ
इश्क़ ने यूँ दोनों को आमेज़ किया

अब तो तुम भी कह देते हो तुम भी नाँ

ख़ुद ही कहो अब कैसे सँवर सकती हूँ मैं

आईने में तुम होते हो तुम भी नाँ
बन के हँसी होंटों पर भी रहते हो

अश्कों में भी तुम बहते हो तुम भी नाँ

मेरी बंद आँखें तुम पढ़ लेते हो

मुझ को इतना जान चुके हो तुम भी नाँ
माँग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही

हाथ में हाथ लिए बैठे हो तुम भी नाँ

ग़ज़ल

दुनिया तो हम से हाथ मिलाने को आई थी

हम ने ही ए’तिबार दोबारा नहीं किया
फ़ैसला बिछड़ने का कर लिया है जब तुम ने

फिर मिरी तमन्ना क्या फिर मिरी इजाज़त क्यूँ

तअ’ल्लुक़ जो भी रक्खो सोच लेना

कि हम रिश्ता निभाना जानते हैं

अब के हम ने भी दिया तर्क-ए-तअ’ल्लुक़ का जवाब
होंट ख़ामोश रहे आँख ने बारिश नहीं की

मुझ में अब मैं नहीं रही बाक़ी

मैं ने चाहा है इस क़दर तुम को

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