1- शव को काटकर खा जाना (Endocannibalism)
ये प्रथा तो सुनकर ही काफी अजीब लग रही है कि ऐसा भी होता है क्या, अंतिम संस्कार के नाम शव को ही खा जाना, पर ये बिल्कुल सच है। लगभग 8 लाख साल पुरानी ये प्रथा आज भी इंडो-यूरोपीय इलाकों में चली आ रही है। इस प्रथा में मरने के बाद लोग शवों को ही काटकर खा जाते हैं। वहीं कुछ लोग पहले इन शवों को सड़ाते हैं और तब तक सड़ाते हैं जब तक इस शरीर से पानी जैसा तरल पदार्थ ना निकलने लगे। इतिहासकरों का कहना है कि ऐसा लोग इसलिए करते हैं ताकि इस तरल पदार्थ से शराब बनाई जा सके और फिर इसे अपने स्वजनों की याद के स्वरूप इसका सेवन किया जा सके।2- शव को मोतियों में बदलना
मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार के तौर पर उनके शवों को रंग-बिरंगे मोतियों-माणकों में बदल दिया जाता है। यानी व्यक्ति के अवशेषों (राख) को रत्नों में संरक्षित कर लिया जाता है। ये उनके प्रियजनों की याद बनकर उनके घरों में रहता है। ये प्रथा आज भी दक्षिण कोरियाई इलाकों में होती है।3- शवों को कब्र से बाहर निकालकर जश्न मनाना
मेडागास्कर जैसे इलाकों में आज भी ये पंरपरा है कि जब उनके स्वजनों की मौत होती है तो अंतिम संस्कार के रूप में पहले वो उनके शवों को दफनाते हैं और फिर कुछ दिन बाद वापस उस कब्र को खोद कर शव को बाहर निकालते हैं। तब तक वो शव कंकाल मात्र रह जाता है। ये देखने के बाद उनके परिजन उस कंकाल को कपड़े में लपेटते हैं और बाहर निकाल कर अपने गावों में रखकर उसी के सामने नाच-गाना कर जश्न मनाते हैं। इसके पीछे इस समुदाय का मानना है कि जब शव सिर्फ कंकाल मात्र रह जाए तो इसका मतलब है कि उस शरीर की आत्मा ने दूसरा शरीर धारण कर लिया है। इस प्रक्रिया को यहां फैमडिहाना कहते हैं।4- गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए डालते हैं शव
ये प्रक्रिया अभी भी ज्यादातर तिब्बत में अपनाई जाती है। यहां के बौद्ध धर्म से जुड़े लोग अपने स्वजनों के अंतिम संस्कार के लिए इसे अपनाते हैं। यहां शव को पहले छोटे-छोटे टुकडो़ं में काटा जाता है। फिर उन टुकडो़ं को अंतिम संस्कार वाली जगह पर ले जाया जाता है इसके बाद बौद्ध भिक्षु धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इसके बाद इन टुकड़ों को किसी भी अनाज के आटे के घोल में डुबोया जाता है। फिर इन टुकड़ों को बाज और गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए फेंक दिया जाता है। इसके पीछे इस समुदाय की मान्यता है कि इस तरह आत्म बलिदान की अनुभूति होती है क्योंकि दफनाने के बाद भी इन शवों को कीड़े-मकौड़े ही खाते हैं और तिब्बत में ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं जिससे वहां पेड़ों की ज्यादा पैदावार नहीं है जिससे लकड़ियों की कमी है और दूसरा वहां की जमीन ज्यादा पथरीली है ऐसे में कब्र खोदने में भी काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ता है।4- उंगली काटना
अरे! आप ये मत सोचिए कि यहां शव की उंगली काटी जाती है, ये बिल्कुल गलत है। दरअसल पपुआ गिनी जैसे देशों में ये प्रथा कई अर्से से चली आ रही थी लेकिन अब इस पर बैन लगा दिया है क्योंकि इस प्रथा में शव की उंगलियां नहीं बल्कि मरने वाले शख्स के परिजनों में से किसी की एक की उंगली काटी जाती थी और एक उंगली नहीं बल्कि एक हाथ की पांचों उंगली। इस प्रथा को लेकर इस समुदाय का मानना था कि ऐसा करने से आत्मा उन्हें परेशान नहीं करती है और उसे मुक्ति मिल जाती है।5- गिद्धों के लिए शव को टॉवर पर फेंकना
ये प्रथा पारसिय़ों में आज भी प्रचलित है। ईरान जैसे देशों में शवों को परिजन टॉवर ऑफ साइलेंस नाम की जगह पर फेंक जाते हैं। इससे पहले इन शवों को बैल के मूत्र से धुला जाता है। इसके बाद इसे टॉवर पर फेंका जाता है। यहां पर गिद्धों को झुंड इन शवों को खा जाता है। इन प्रथाओं के अलावा कई और प्रथाएं हैं जैसे न्यू ऑरलियन्स में शव को बैंड-बाजे का साथ अंतिम यात्रा निकालते हैं और उसे दफनाते हैं। इसके अलावा फिलीपींस के पश्चिमी इलाकों में आंखों में पट्टी बांधकर शव को दफनाया जाता है। फिलीपींस के ही मनीला में मरने वाले लोगों को सूखे पड़े के तने में दफनाते हैं।
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