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कबूतरों को चुन-चुन कर बेरहमी से मौत के घाट उतारने पर आमादा ये शहर, जानिए क्यों?

पिछले साल नवम्बर में नगर परिषद ने निर्णय लिया था कि लिम्बर्ग के कबूतरों को मारने के लिए कबूतरों को जाल में फंसाया जाए और लकड़ी की छड़ी से वार कर कबूतरों की गर्दन तोड़ दें।

नई दिल्लीJun 24, 2024 / 10:12 am

Jyoti Sharma

Pigeons killed in a city in Germany

जर्मनी के एक शहर लिम्बर्ग एन डेर लाहन में कबूतरों (Pigeons) की पूरी आबादी को खत्म करने के लिए हुए जनमत संग्रह के नतीजों ने एक नई बहस छेड़ दी है। स्थानीय मीडिया के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में हुए जनमत संग्रह में निवासियों ने पक्षियों को मारने के पक्ष में मतदान किया। पशु-पक्षी अधिकार कार्यकर्ता इसकी आलोचना कर रहे हैं वहीं, अधिकारी अभी भी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि जनमत संग्रह के परिणामों के आधार पर आगे बढ़ना है या नहीं। 
लिम्बर्ग के मेयर मारियस हैन ने कहा कि नागरिकों ने फैसला किया है कि अगले दो वर्षों में कबूतरों की आबादी को बाज के सहारे कम किया जाए। बाज पालक की नियुक्ति की जानी चाहिए। मेयर ने बताया कि जनमत संग्रह के कार्यान्वयन की अंतिम समीक्षा अभी भी लंबित है।

क्यों मारना चाहते हैं कबूतरों को

निवासियों और व्यापार मालिकों ने दावा किया कि वे वर्षों से शहर के कबूतरों की बीट से परेशान हैं। पिछले वर्ष नवम्बर में नगर परिषद ने निर्णय लिया था कि लिम्बर्ग के कबूतरों को मारने के लिए कबूतरों को जाल में फंसाया जाए और लकड़ी की छड़ी से वार कर कबूतरों की गर्दन तोड़ दें! इस निर्णय का कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया और इसके बाद जनमत संग्रह का आयोजन किया गया। अब जनमत संग्रह भी कबूतरों को मारने के पक्ष में गया है।

प्लास्टिक के अंडे जैसे भी उपाय

आलोचकों का कहना है कि कबूतरों को मारना वास्तव में प्रभावी नहीं है क्योंकि बचे हुए पक्षी प्रजनन करेंगे, जिससे उनकी आबादी बढ़ेगी। फ्रैंकफर्ट जैसा एक अन्य जर्मन शहर कबूतरों को नियंत्रित रखने के लिए असली अंडों की जगह प्लास्टिक के अंडे रखने जैसे उपाय आजमा रहे हैं, जबकि हेगन शहर एक ऐसी दवा का परीक्षण कर रहा है जो पक्षियों को अस्थायी रूप से बांझ बना देती है।
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