NRI wrote this beautiful love letter to the Environment: आकाश ही गति का मैदान है। हमारा चलना फिरना, पेड़ पत्तों का उगना, पानी का वाष्प बनकर बादलों का स्वरूप लेना और बरसात का होना, धरती का घूमना, चांद की चांदनी और सूरज की किरणों का धरती तक पहुंचना आदि। यह सब आकाश के कारण ही सम्भव बन पड़ता है। आकाश की भूमिका को हम प्रायः अनदेखा करते हैं।
Environment News in Hindi : धरती अपनी धुरी पर घूम रही है। यह घूमते व नाचते हुए सूरज की परिक्रमा कर रही है। अनथक ताण्डव, बिन शिकायत सब घट रहा है, ताकि धरती पर जीवन को सूरज का ताप मिल सके। जीवन गतिमान रह सके। सूरज की रोशनी जब ढल जाये तो रात्रि हो जाये। रात्रि में जीवन की थकान को पूर्ण विश्राम मिल जाये।
घर, इस धरती पर डाक टिकट के आकार का सा
धरती के चहुंओर वायुमंडल है। यह वायुमंडल ही पर्यावरण और पारिस्थितिकी का जनक है। इन सबका मेल धरती पर जीवन की सक्रियता को सम्भव बनाये हुए हैं। हम सबका घर, इस धरती पर डाक टिकट के आकार का सा है। एक चौकोर, चौहद्दी, चौबंद रहवास, इससे अधिक कुछ नहीं है। इस रहवास में, हम सर्दी में, अंदर घुसकर शरीर का तापमान बनाए रखते हैं। गर्मी में डाक टिकट के आकार के धरती पर, बने घर की छत पर, अगाड़ी या घर के पिछवाड़े में चारपाई या कुर्सी डाल कर बैठ जाते हैं या फिर ए सी चलाकर घर के कमरे में बंद हो जाते हैं।हमारी सोच भी डाक टिकट की मानिंद
जब हम इस डाक टिकट के आकार में रहने लगते हैं तो हमारी सोच भी डाक टिकट की मानिंद आकार लेने लगती है। हम केवल उतने भर सीमित के बारे में ही सोचते हैं। हम डाक टिकट के कौनों को साफ कर, कचरा बाहर गली में झाड़ देते हैं। यह करते हुए हम समष्टी को भूल जाते हैं। पर्यावरण की सोच कहीं दूर, क्षितिज पर, धुंधलका बनी सी दिखाई पड़ती है। वह भी तब जब, यदि हमारे पास, समझ की पकड़ का चश्मा हो।जीवन एक लेन देन से अधिक कुछ नहीं
जीवन एक लेन देन से अधिक कुछ नहीं है। यही कारण है कि राजनीतिक लोग जब आर्थिक विकास की बात करते हैं। वे आर्थिक विकास की जबान के बदले सत्ता की कुर्सी मांगते हैं। हम उनसे कभी यह सवाल नहीं करते कि आर्थिक विकास की कीमत पर, हमें क्या चुकाना या झेलना पड़ेगा ? आर्थिक विकास इस धरती पर जीवन को किस तरह प्रभावित करेगा ? उसके दीर्घकालिक क्या परिणाम होंगे ?नरक अपने चारों ओर खड़ा कर लिया
पिछली सदियों में ऐसे प्रश्न राजनीतिकों से नहीं किये गए। यही कारण है कि मानव ने अपने ही हाथों, वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरों की अनियोजित बसावट, अनियंत्रित खनन, कृषि की पैदावार में रासायनिक खाद का उपयोग, औद्योगिक विषाक्त कचरा, प्लास्टिक सूप, विषाक्त नाले और नदियां, जैसा जहर और नरक अपने चारों ओर खड़ा कर लिया है।इस धरती पर हम चलते फिरते और अपना जीवन जीते हैं। इस धरती की बांट की इकाई है डाक टिकट यानी धरती पर हमारा घर, आपका घर, मेरा घर। धरती के ऊपर बहने वाली हवा, खुला आकाश, चांद की चांदनी और सूरज की रोशनी पर, हम अधिकार नहीं पा सकते। उन सब पर हम डाक टिकट की नाईं कब्जा नहीं कर सकते हैं। हालांकि डाक टिकट ( Postage stamp) का जीवट इन सब पर निर्भर करता है।
बिना डाक टिकट लगाए पत्र
एक पत्र को डाक टिकट लगा कर पोस्ट किए जाने और उसके उस पत्र के प्राप्तकर्ता तक पहुंचने तक बहुत से हाथों गुजरना पड़ता है। डाक के थैलों में बंद होता, बस में, रेल में, हवाई जहाज में, जहाज में सफर करता। थैलों में गिरा, पड़ा, टेढ़ामेढा हो बोझ का दर्द सब झेलता है। पत्र को डाक से भेजने के लिए कुछ भुगतान अवश्य करना पड़ता है। एक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। पाती पर डाक टिकट लगानी पड़ती है। अन्यथा पत्र प्राप्त करने वाले को पेनल्टी भुगतने पर ही पत्र मिलता है। कमोबेश मानवता की स्थिति, इस धरती पर जीने की स्थिति, बिना डाक टिकट लगाए पत्र की जैसी है।केवल जबानी जमा खर्च
आज हम केवल जबानी जमा खर्च कर रहे हैं। पर्यावरण पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इस धरती की जीवनदायी व्यवस्था को छेड़ रहे हैं। हमारे जीवन की चिट्ठी हर रोज धरती और पर्यावरण के पन्नों पर लिखी जा रही है। इस बैरंग पत्र का गंतव्य अगली पीढ़ियां हैं। इस सब की पेनल्टी भावी पीढ़ी को भुगतनी पड़ेगी।हम लापरवाही भी बढ़ चढ़ कर रहे
हमने धरती और पर्यावरण को व्यवस्थित छोड़ा ही नहीं है। हम लापरवाही कर रहे हैं। हम लापरवाही भी बढ़ चढ़ कर रहे हैं। यह लापरवाही आगामी पीढ़ी को बैरंग खत लिखकर भेजने के समान है यदि बैरंग पत्र का लिखने वाला कभी घर आ टपकता है तो उसे बैरंग चिट्ठी का उलाहना ज़रूर झेलना पड़ता। सुनने को मिलता था कि लापरवाही हो गई। लेकिन हमारी अगली पीढ़ी जब प्राकृतिक आपदाओं के बीच खड़ी होगी, तब हम अपनी डाक टिकट जैसे घर में, उपस्थित नहीं होंगे। धरती से देह विदा हो चुकी होगी। NRI Writer Rama Takshak
खुला निमंत्रण दे रहे
बहुत से लोगों की जबान से सुनने को मिलता है कि “अरे! कल किसने देखा है ?”यही लापरवाही हम कर रहे हैं और हर रोज कर रहे हैं। अगली पीढ़ी के सामने सूखे, भीषण गर्मी, भारी बरसात से बाढ़, मानवीय इतिहास में ग्लेशियर की कभी न घटी पिघलन, समुद्र का बढ़ता जल स्तर, सब आपदाओं को खुला निमंत्रण दे रहे हैं।आपको होश हो या न हो
आप हर दिन धरती का उपयोग कर रहे हैं। धरती पर बनाए उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं। इन उत्पादों के उत्पादन से लेकर, इनके उपभोग और इनके विसर्जन करने तक, आप हर दिन आने वाली पीढ़ी को एक पत्र लिख रहे हैं। आपको होश हो या न हो परंतु आपके द्वारा यह पत्र, आने वाली पीढ़ियों के नाम, रोज लिखा जा रहा है।बड़ी क़ीमत चुका कर पढ़ेंगी
यह सब देख कर स्पष्ट है कि अगली पीढ़ी आपके जीवन में, प्राकृतिक दोहन का लिखा, बैरंग पत्र पाकर पेनल्टी झेलने से बच न पायेगी। बैरंग पत्र को न प्राप्त करने का विकल्प भी उसके पास नहीं होगा। तुम्हारी लापरवाही भरे जीवन के कर्मों को तुम्हारी ही पीढ़ियां, बहुत बड़ी क़ीमत चुका कर पढ़ेंगी, तुम्हारी बिना डाक टिकट लगी, बैरंग पाती। -रामा तक्षक —————————————
प्रवासी भारतीय साहित्यकार रामा तक्षक का जन्म राजस्थान के अलवर जिले में एक छोटे से गांव जाट बहरोड के सामान्य परिवार में 8 दिसंबर 1962 को हुआ। वे अब तक लगभग तीस देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनके आलेख भारत की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होंने सप 1983 में, छात्र जीवन में ही तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन, दिल्ली में भी भाग लिया था। उन्हें भारत की विभिन्न भाषाओं के साथ-साथ, इटालियन और डच भाषा का भी अच्छा ज्ञान है।