केन्या में कहां से आए भारतीय कौए?
साल 1890 में इन भारतीयो कौओं को केन्या के जांजीबार में कचरा प्रबंधन के लिए लाया गया था। जिन्हें कॉर्वस स्प्लेंडेंस कहा जाता है।इन कौओं को जहाजों के जरिए यहां लाया गया था। पहले ये कौवे तटीय क्षेत्रों तक ही सीमित थे लेकिन साल दर साल वो शहरी और उपनगरीय वातावरण में पनपते गए। जिसके बाद उनकी पहुंच पूरे देश में हो गई। ये कौवे मानव अपशिष्ट से लेकर छोटे जानवरों तक विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। शुरुआत में तो इन कौओं को केन्या की गंदगी हटाने के लिए रखा गया था लेकिन कौवों की उपस्थिति के कारण देशी पक्षियों की आबादी में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिनमें से कुछ अब लुप्त होने की कगार पर हैं।कौओं से क्या परेशानी?
रिपोर्ट में सामने आया है कि ये बड़ी संख्या में पनप चुके है ये कौवे स्थानीय जीवों पर हमला कर रहे हैं। खाने-पीने की दुकानों पर और पोल्ट्री फार्मों में चूजों पर हमला कर रहे हैं और यहां तक कि हवाई अड्डों पर पक्षियों के हमले के कारण जोखिम पैदा कर रहे हैं। जिससे अब केन्या को बड़ी समस्या होने लगी है। इसके अलावा इन कौओं ने केन्या में आर्थिक क्षति भी पहुंचाई है। वो फसलों पर हमला करने के लिए कुख्यात हैं, जिससे महत्वपूर्ण कृषि हानि होती है। प्रभावित क्षेत्रों के किसानों ने अपने खेतों को काफी नुकसान होने की सूचना दी है, क्योंकि कौवे बीज, फल और अनाज खा जाते हैं। इन नुकसानों का वित्तीय बोझ काफी है, जिससे कई ग्रामीण समुदायों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
कौओं को खत्म करने का क्या है प्लान?
केन्या ने इन भारतीय कौओं की बढ़ती संख्या और बढ़ती समस्याओं के जवाब में, इस साल के अंत तक दस लाख कौवों को खत्म करने की योजना की घोषणा की है। इस प्लान में होटल व्यवसायी के आयातित लाइसेंस मिले जहर का उपयोग किया जाएगा और इन्हें मारने के लिए जाल और गुलेल का इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि केन्या की सराकर के इस फैसले का वन्य जीव प्रेमियों ने विरोध किया है। उन्होंने इस फैसले को एक जीव को बचाने के लिए दूसरे जीव के समूल नाश वाला बताया है। हालांकि केन्या की सरकार ने पर्यावरण विशेषज्ञों, संरक्षणवादियों और सामुदायिक नेताओं के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया। जिसके बाद ये फैसला लिया गया है।