मातृ भाषा बोलने पर बच्चों को पीटा जाता, भूखा रखा जाता
अमेरिका की संघीय सरकार ने 1819 से 1970 के दशक तक इंडियन बोर्डिंग स्कूल स्थापित किए। बच्चों को जबरन उनके घरों और परिवारों से जबरन निकाल कर इन स्कूलों में डाला गया। इनमें से कई स्कूल चर्चों के जरिए चलाए जाते थे और सरकार उनका वित्त पोषण करती थी। भारतीय बच्चों को भावनात्मक और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता था। जिसमें अपनी मूल भाषा बोलने पर उन्हें पीटा और भूखा रखा जाना शामिल है। कुछ मामलों में, बच्चे मर गए और कई कभी घर नहीं लौटे। ऐसे करीब 18000 बच्चे थे, इनमें से कई 4 साल से कम उम्र के थे। गृह मंत्री देब हैलैंड 2023 में ‘रोड टू हीलिंग’ दौरे का नेतृत्व किया, जिसमें स्वदेशीय लोगों से बातचीत की गई। जांच में 973 बच्चों की मौतों का दस्तावेजीकरण किया गया। हैलैंड खुद भी नैटिव अमरीकन समुदाय से हैं। गृह मंत्रालय ने बचे लोगों के अनुभव को दर्ज करने के लिए एक मौखिक इतिहास परियोजना भी शुरू की।
घरों से हजारों मील दूर फंसे थे बच्चे
19वीं सदी से लेकर 1970 के दशक तक अमेरिकी सरकार ने ईसाई चर्चों के साथ मिलकर नैटिव-अमेरिकन इंडियन, अलास्का नैटिव और हवाईयन नैटिव बच्चों के लिए बोर्डिंग स्कूल चलाए। ऐसे 523 से ज्यादा स्कूल थे। इन स्कूलों का मकसद था कि मूल-निवासी बच्चों को प्रमुख श्वेत संस्कृति में आत्मसात किया जाए और उनकी पारंपरिक संस्कृति को खत्म किया जाए। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या लाखों में थी। ये स्कूल कभी-कभी बच्चों के घरों से सैकड़ों या हजारों मील दूर होते थे। जहां उन्हें अपने माता-पिता से अलग रहना होता था।
अन्य देश भी मांग चुके हैं माफी
कनाडा में भी ऐसी ही नीति लागू थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने 2008 में लगभग 150,000 स्वदेशी बच्चों को राज्य द्वारा वित्तपोषित ईसाई बोर्डिंग स्कूलों में जाने के लिए मजबूर करने के लिए माफी मांगी थी। सरकार ने एक सुलह आयोग भी शुरू किया जिसने देश की आवासीय स्कूल प्रणाली के इतिहास का दस्तावेजीकरण किया।ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री केविन रुड ने 2008 में आदिवासी और टोरेस स्ट्रेट द्वीप के लोगों से अपनी सरकार की पिछली नीतियों के लिए औपचारिक रूप से माफी मांगी, जिसमें बच्चों को जबरन उनसे दूर करना शामिल था। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने भी 2022 में इसी तरह का कदम उठाया।