क्या कहा है चीन ने?
दरअसल इस मुद्दे पर बीते मंगलवार (स्थानीय समय) को चीन के प्रवक्ता यू जिंग ने अपना बयान जारी किया। इस मुद्दे पर यू जिंग ने कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) पर बांध बनाने से भारत और बांग्लादेश सहित निचले इलाकों के देशों को उनकी “आपदा रोकथाम और न्यूनीकरण और जलवायु प्रतिक्रिया” में ‘सहायता’ मिलेगी। जिंग ने कहा कि यारलुंग त्सांगपो (भारत की ब्रह्मपुत्र नदी) के निचले क्षेत्र में जलविद्युत परियोजना (China Hydropower Project) बनाने का चीन का फैसला सारी परेशानियों और फायदों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। वैज्ञानिकों से इस बारे में कई शोध करवाए गए हैं और उन्हीं के आधार पर इस निर्माण कार्य का फैसला लिया गया है। चीन ने कहा कि वो एक बार फिर से अपनी इस बात को दोहराता है कि यारलुंह त्सांगपो (China Dam on Brahmaputra River) पर बनने वाले डैम से पारिस्थिकी पर्यावरण, भूवैज्ञानिक स्थिति और निचले देशों के जल संसाधनों, उनके हित के अधिकारों पर किसी तरह का कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। बल्कि इस प्रोजेक्ट से कुछ हद तक, उनकी आपदा रोकथाम और न्यूनीकरण और जलवायु प्रतिक्रिया में मदद मिलेगी।
भारत और बांग्लादेश की क्या समस्या है?
दरअसल लगभग 4 दिन पहले भारत ने चीन के इस प्रोजेक्ट को लेकर सवाल खड़े किए थे। भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले इस डैम को लेकर निचले इलाकों के लिए चिंता व्यक्त की थी, भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा था कि “भारत ने चीन से कहा है कि उनके प्रोजेक्ट से ब्रह्मपुत्र नदी के निचले राज्यों को ऊपरी क्षेत्रों में होने जा रही इस प्रोजेक्ट की गतिविधियों से कोई नुकसान ना पहुंचे। भारत ने कहा कि वो चीन के इस प्रोजेक्ट पर लगातार निगरानी करेगा और जरूरत पड़ने पर उपाय करेगा।” दरअसल चीन के इस बांध के आकार और पैमाने के चलते चीन को ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने की क्षमता मिल जाएगी। जिससे भारत के निचले इलाके और बांग्लादेश में पानी की उपलब्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि बांग्लादेश भी निचले इलाके में ही शामिल है। क्योंकि चीन का ये प्रोजेक्ट हिमालय की एक विशाल घाटी में बन रहा है। यहीं से ब्रह्मपुत्र नदी निकलती है अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करते हुए यू-टर्न लेकर बांग्लादेश की तरफ बहती है।