उधर, बार काउंसिल ने सजा के खिलाफ सरकार और सेना के रुख की कड़े शब्दों में निंदा की है। चीफ जस्टिस आसिफ सईद खोसा का कहना है, न्यायपालिका के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया जा रहा है और इसकी सच्चाई सामने आ जाएगी। विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी व पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) ने फैसले का समर्थन किया है। दोनों की सरकारों को मुशर्रफ के कारण सत्ता छोडऩी पड़ी थी।
लंबा है राजनीतिक उथल-पुथल का इतिहास
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की बर्खास्तगी के एक वर्ष बाद वकीलों के विरोध के बाद वर्ष 2008 में मुशर्रफ को राष्ट्रपति पद छोडऩा पड़ा था। 2017 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य करार दिया था। विदेश और सुरक्षा संबंधी मामलों में सेना से टकराव ने पहले ही उनकी सरकार को कमजोर कर दिया था। रही सही कसर भ्रष्टाचार के आरोपों ने कर दी। इसके बाद नवाज ने पद छोडकऱ भाई को कमान सौंप दी थी।
मुशर्रफ ने 1999 से 2008 तक दो बार अपने शासन के दौरान संविधान को निलंबित कर दिया। पहली बार वर्ष 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाया, जबकि वर्ष 2007 में आपातकाल लगाया। बीमार बताए जा रहे मुर्शरफ वर्ष 2016 से दुबई में हैं। पाकिस्तान में सेना के हाथ शासन का लंबा इतिहास रहा है। 1947 में आजादी के बाद चार बार मार्शल लॉ लगाया जा चुका है। सेना पर 2018 के चुनाव में इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ को जीत दिलाने में हेरफेर का भी आरोप लग चुका है।