Haemophilia A: 5 लोगों पर भारतीय वैज्ञानिकों ने 6 महीने किया एक्सपेरिमेंट और मिल गया इस बड़ी बीमारी का इलाज
Haemophilia A: हीमोफ़िलिया ए एक दुर्लभ रक्त विकार है, जिसमें रक्त ठीक से जम नहीं पाता। यह एक आनुवंशिक विकार है, जो रक्त में थक्का बनाने वाले कारक (फ़ैक्टर VIII) की कमी या दोष के कारण होता है। हीमोफ़िलिया ए को क्लासिक हीमोफ़िलिया भी कहा जाता है. यह रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को काफी प्रभावित करता है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण चिकित्सा उपलब्धि हासिल करते हुए गंभीर हीमोफीलिया ए (Haemophilia A) के लिए पहली बार मानव जीन थेरेपी विकसित की है। एफवीआइआइआइ (FVIII) की कमी के लिए देश के इस पहले मानव क्लिनिकल जीन थेरेपी परीक्षण को क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) वेल्लोर में स्टेम सेल अनुसंधान केंद्र (CSCR) द्वारा अंजाम दिया गया। इस चिकित्सा ने बेहद कारगर परिणाम दिखाए हैं। इस शोध में 22 से 41 वर्ष की आयु के पांच प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। शोधकर्ताओं ने कहा, जीन थेरेपी के बाद प्रतिभागियों की छह महीने तक निगरानी की गई। यह उपलब्धि गंभीर हीमोफीलिया ए के रोगियों के लिए नई उम्मीद की किरण है। जल्द ही इस थेरेपी का दूसरा मानव परीक्षण किया जाएगा।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने कहा कि इस थेरेपी से सभी पांच नामांकित प्रतिभागियों में रक्तस्राव दर सफलतापूर्वक शून्य हो गई, जबकि फैक्टर-5 का उत्पादन लंबे समय तक जारी रहा। इससे बार-बार इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता समाप्त हो गई। गौरतलब है कि हीमोफीलिया ए एक गंभीर रक्तस्राव विकार (ब्लीडिंग डिसऑर्डर) है, जो थक्के बनाने वाले फैक्टर-5 की कमी के कारण होता है। यह रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को काफी प्रभावित करता है, जिससे ब्लीडिंग होती है। हालांकि यह दुर्लभ है, लेकिन भारत में हीमोफीलिया के लगभग 136,000 मामले हैं जो दुनिया में दूसरे सर्वाधिक हैं।
भारत के तमिलनाडु में हुए परिक्षण
भारत में अभी तक तमिलनाडु के केवल पाँच रोगियों पर परीक्षण किया गया है, लेकिन उनमें से किसी ने भी 14 महीने की औसत अनुवर्ती अवधि में रक्तस्राव की घटना की सूचना नहीं दी है। हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों के लिए साप्ताहिक रक्तस्राव की घटना होना असामान्य नहीं है, जिसके लिए लगातार उपचार की आवश्यकता होती है। अध्ययन के परिणाम इस सप्ताह की शुरुआत में सहकर्मी-समीक्षित न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (NEJM) में रिपोर्ट किए गए थे।