Higher education from Abroad options : देश के बाहर जाकर हायर एजुकेशन (Education Abroad) के प्रति युवाओं में बहुत पैशन और चार्म है। इसके कारणों को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। भारत के अधिकतर युवा हायर एजुकेशन के लिए कनाडा, अमरीका या यूके जा कर स्टडी करना पसंद करते हैं। वे डॉक्टर बनने रूस, चीन, यूक्रेन,फिनलैंड, कज़ाक़िस्तान, जॉर्जिया जर्मनी, र्किगिस्तान और नेपाल जाते हैं तो इंजीनियर बनने यूके ,जर्मनी, अमरीका और ब्रिटेन और एमटेक करने अमरीका जाते हैं । एमबीए करने के लिए ब्रिटेन की क्रैमफील्ड यूनिवर्सिटी या ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी चूज करते हैं।
विदेश जाने से एक्सपोजर मिलता है
उनकी सोच है कि विदेश जाने से एक्सपोजर मिलता है। विदेशी यूनिवर्सिटीज में लीडरशिप पर अधिक फोकस होता है।
यूथ की सोच है कि टेक्निकल नॉलेज, स्टूडेंट्स के व्यक्तिगत स्किल्स पर ध्यान दिया जाता है। इससे उनके अंदर एक अलग स्किल डवलप होता है। वहां अनुभव आधारित शिक्षा दी जाती है। केस स्टडी, असल जीवन के उदाहरण समझाए जाते हैं। अलग-अलग देशों के साथी क्लासमेट्स से भी बहुत कुछ सीखने के लिए मिलता है।
एविडेंस, प्रोजेक्ट और प्रैक्टिकल अप्रोच के साथ शिक्षा
यूथ का मानना है कि भारत में किताबी ज्ञान पर अधिक जोर होता है, जबकि विदेश में एविडेंस, प्रोजेक्ट और प्रैक्टिकल अप्रोच के साथ शिक्षा दी जाती है। वहां जाकर बच्चे रिसर्च करते हैं और अपने अनुभवों से ही बहुत कुछ सीख जाते हैं। रिसर्च जैसी चीजों के लिए भारत में ज्यादा फंड नहीं मिलते हैं, जितना विदेशों में फंड मिलता है। इसलिए तो हमारे भारतीय भी अधिकतर रिसर्च बाहर जाकर ही कर पाते हैं जहाँ पैसों की कमी नहीं होती है। कुछ स्टूडेंट्स ऐसे होते हैं जो यहाँ पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन हमारे यहाँ इतने आईआईटी और आईआईएम इतने ज्यादा नहीं हैं कि सारे स्टूडेंट्स यहीं एडजस्ट हो जाएं, इसलिए उन्हें बाहर जाना पड़ता है।
फॉरेन इंस्टीट्यूट्स ज्यादा पसंद
युवाओं का विचार है कि भारत में इतने आईआईटी और आईआईएम नहीं हैं कि सारे स्टूडेंट्स यहीं एडजस्ट हो जाएं, इसलिए उन्हें बाहर जाना पड़ता है। जितने भी स्टूडेंट्स हैं, वे भारत के टॉपमोस्ट इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन लेना चाहते हैं। जिन्हें नहीं मिल पाता, वे सेकंड टियर के इंस्टीट्यूट्स के बजाय फॉरेन इंस्टीट्यूट्स ज्यादा पसंद करते हैं। स्टूडेंट्स विदेश जाकर इसलिए पढ़ना चाहते हैं, क्योंकि आगे चलकर उन्हें ग्लोबल ऑर्गेनाइजेशन मैनेज करने का मौका मिलता है, जिससे ग्लोबल एक्सपोजर मिलता है। भारत में भी ऐसे कॉलेज और इंस्टीट्यूट्स हैं, जहां बाहर से फैकल्टीज को बुलाकर स्टूडेंट्स को ग्लोबल एक्सपोजर उपलब्ध कराया जाता है।
विदेश में पढ़ना सुनहरा अवसर
यूथ का मानना है कि भारत में ऐसे कॉलेज और इंस्टीट्यूट्स हैं, जहां बाहर से फैकल्टीज को बुलाकर स्टूडेंट्स को ग्लोबल एक्सपोजर उपलब्ध कराया जाता है। युवाओं को पता होता है कि कहाँ अच्छा भविष्य बन सकता है, इसलिए मौका और सहूलियत मिलते ही वो मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं। इसलिए विदेश में पढ़ना उनके लिए एक सुनहरा अवसर है, जिसे मिलता है, वो युवा खोना नहीं चाहते हैं, क्योंकि आगे उन्हें अपनी सफलता साफ दिखाई देती है। दूसरी तरफ देश के कई ऐसे युवा हैं जो विदेश जाकर पढ़ाई करके वापस आते हैं और अपने देश आकर रोजगार के कई अवसर उपलब्ध कराते हैं।
टॉप इंस्टीट्यूट से ही एम बी ए करना था
एक भारतीय नागरिक संगीता मेहता का कहना है कि उनके बेटे और उसके दोस्तों ने जब मुंबई से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई की तब उन्हें आगे पढ़ने के लिए भारत के पहले चार पाँच टॉप इंस्टीट्यूट से ही एम बी ए करना था, जो मिल नहीं पाया। जबकि टॉप कंपनियों के जॉब ऑफर सबको मिल गए थे, लेकिन ये उनकी मंजिल नहीं थी। उन्हें तो आगे पढ़ना ही था।
पच्चीस से तीस लाख रुपए खर्च हुए
संगीता मेहता कहती हैं कि मेरे बेटे और उसके कई दोस्तों ने अमरीका के कई इंस्टीट्यूट में नंबर के मुताबिक आगे की पढ़ाई के लिए फार्म भरे। कई सारी औपचारिकताओं के बाद मेरे बेटे का वाशिंगटन डी सी में एम टेक पढ़ने के लिए सलेक्शन हो गया। बेटे को पढ़ाई करनी ही थी और मेरे पति भी बेटे को बाहर भेज कर पढ़ाने के लिए तैयार थे। अमरीका में पढ़ाई करने के लिए सन् 2012–15 में पच्चीस से तीस लाख रुपए खर्च हुए थे।
लोन बेटे ने पूरा चुका दिया
वे कहती हैं कि उसी तरह उसके पाँच-छ दोस्तों को भी अलग अलग जगहों पर एडमिशन मिल गया था। बच्चों को पढ़ाई करते- करते ही यूनिवर्सिटी में काम मिल गया था, जिससे वो अपना महीने का खर्च निकाल लेते थे। एक बार पढ़ाई पूरी होने के बाद वहीं की कंपनी भारत के मुकाबले कहीं अच्छे पैसों पर उन्हें हायर कर ली थी। जो भी पढ़ाई के लिए लोन लिया गया था वो दो से तीन सालों के दौरान ही बेटे ने पूरा चुका दिया। एक सफल करियर के लिए युवाओं के लिए बाहर जाकर पढ़ना बहुत अच्छा विकल्प है, जिनके माता पिता शुरुआती खर्च वहन कर सकते हैं।
विदेश में पढ़ाई करने जाने का कारण
अमरीका के बिजनेस स्कूलों में पढ़ने के लिए यंगस्टर्स 30 से 35 लाख रुपए खर्च कर देते हैं। अगर कहीं स्कॉलरशिप नहीं मिली, तो खर्च और बढ़ जाता है और विदेश में पढ़ने करने का क्रेज बरकरार है। युवाओं का विचार है कि बाहर स्टडी करने से एक्सपोजर मिलता है। विदेशी यूनिवर्सिटीज में लीडरशिप पर अधिक फोकस होता है। टेक्निकल नॉलेज और नेटर्किंग स्किल्स पर ध्यान दिया जाता है।
स्टूडेंट्स का एक अलग पर्सपेक्टिव
युवाओं की सोच है कि स्टूडेंट्स का एक अलग पर्सपेक्टिव डवलप होता है। वहां अनुभव आधारित शिक्षा दी जाती है। केस स्टडी, असल जीवन के उदाहरण बताए जाते हैं। अलग-अलग देशों के साथी क्लासमेट्स से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है जबकि भारत में थ्योरिटिकल बेस्ड पढ़ाई होती है। अतीत के उदाहरण दिए जाते हैं, बुक्स फॉलो करने को कहा जाता है, जिससे कि परीक्षा में अच्छे मार्क्स आ सकें।’