खैर, इस द्वेष को ट्रंप के कुछ बयानों के साथ देख लेते हैं। 6 नवंबर को जब राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे और परिणाम आने ही वाला था, तब अपनी उम्मीदवार होने की आखिरी स्पीच में ट्रंप तंज करते हुए कहते हैं कि मैं महिलाओं की सुरक्षा करूंगा, चाहे उन्हें मेरी यह बात पसंद हो या ना हो। उन्हें प्रवासियों से बचाऊंगा, दूसरे देशों से बचाऊंगा और हॉल में गूंजती है एक हंसी। गूंजती हंसी में याद आता है कि ये वही ट्रंप हैं, जिन पर उनकी देश में 25 से ज्यादा महिलाएं यौन दुराचार का आरोप लगा चुकी हैं। ट्रंप की इन्हीं टिप्पणियों की वजह से उनका पूरा चुनाव अभियान मस्कुलिन यानी मर्दाना कहा गया। इस पर संयुक्त राष्ट्र में पूर्व राजदूत निक्की हेली ने आपत्ति जताते हुए कहा भी था कि ट्रम्प अभियान को मस्कुलिन होने का खामियाजा उठाना पड़ेगा। लेकिन क्या ऐसा कुछ हुआ? जबकि अमरीकी राष्ट्रपति ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस पर जो टिप्पणियां की, उसके बाद लग रहा था कि अमरीका की महिलाएं एक तरफा वोट करेंगी।
कमला हैरिस पर की रंगभेद की टिप्पणी
17 अगस्त को अपनी एक रैली के दौरान वे कह चुके कि मैं कमला हैरिस से ज्यादा अच्छा दिखता हूं। यह उनकी रंगभेद टिप्पणी थी, लेकिन उस पर भी वे हंसते रहे। और इससे पहले 3 जुलाई को ट्रंप कमला हैरिस को मंच से जेंडर बायस्ड गाली देते सुने गए। ऐसा नहीं है कि ट्रंप अभी ऐसे हुए हैं। उनके इस किरदार से हर कोई वाकिफ है। अमरीका में साल 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के सामने थी हिलेरी क्लिंटन। अमरीका के पॉपुलर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी। उसी चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने हिलेरी के खिलाफ असभ्य टिप्पणी करते हुए कहा था कि जब वो अपने पति को संतुष्ट नहीं कर सकती तो वो कैसे सोच सकती है कि अमरीका को संतुष्ट कर देगी।
नि:संतान होने का बनाया मजाक
सिर्फ ट्रंप ही नहीं उनके समर्थकों में से एक एलन मस्क भी उनकी इसी विचारधारा के समर्थक पाए गए। उन्होंने ट्रंप के चुनावी अभियान के दौरान विज्ञापन चलाया, जिसमें लिखा कि “कमला हैरिस एक सी वर्ड है”। जबकि ट्रंप के साथी जेडी वेंस ने अटलांटा रैली में कमला हैरिस के निःसंतान होने का मजाक तक बना दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी निःसंतान महिलाएं अपने जीवन और अपने विकल्पों से दुखी दिखाई दे रही हैं। उनके एजेंडे महिलाओं के प्रति रूढ़िवादिता से प्रभावित रहे, फिर भी उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की।
महिलाओं के प्रति बदनाम रहे ट्रंप का चुनाव सही है?
राजनीति में हार-जीत पर टिप्पणी का अर्थ नहीं, क्योंकि लोकतंत्र में यह जनता का चुनाव है। इसका सम्मान होना ही चाहिए। लेकिन सवाल तो उठता है कि क्या स्त्री द्वेष इस जनता को परेशान नहीं करता? क्या वे इस रूढ़िवादिता को खत्म कर किसी महिला को राष्ट्रपति जैसा पद चुनाव के जरिए नहीं दे सकते? क्या महिलाओं के प्रति अपने बर्ताव से हमेशा बदनाम रहे ट्रंप का चुनाव सही है? सवाल बहुत से हैं, लेकिन जब हम भारत में बैठकर यह कहते हैं कि अमरीका में अब तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं हुई, जबकि भारत में रही है, तो इसका भी जवाब है। भारत में यह सवाल तो और भी बड़ा हो जाता है। क्योंकि यहां उन मुख्यमंत्रियों को भी जनता ने सिर आंखों पर बैठाया, जो बलात्कार तक पर पुरुषों को बचाते रहे। उस पुरुष वर्चस्व के सामने इंदिरा गांधी के पहले और बाद किसी महिला प्रधानमंत्री तक का चुनाव आज भी ख्वाब ही है। वर्तमान में देश के 30 मुख्यमंत्रियों में एकमात्र महिला मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हैं।
भारत में भी स्त्रीद्वेष बहुत बड़ी समस्या
आजादी के 77 सालों में कुल 17 महिलाएं ही सीएम पद पा सकी हैं। एक प्रधानमंत्री और दो राष्ट्रपति। बताएं इससे आगे की गिनती नहीं सीखी रूढिवादियों ने। खैर, हमारे यहां नेताओं ने अपना स्त्रीद्वेष कैसे दिखाया, इसके कुछ उदाहरण देख लेते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शाइना एनसी जब शिवसेना शिंदे गुट में शामिल हुई तो शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता अरविंद सावंत ने उन्हें इम्पॉर्टेड माल तक कह दिया, भले ही उन्होंने माफी मांगी हो, लेकिन महिला नेताओं को राजनीति में दोयम दर्जे का इशारा भी दे दिया।
भारत के नेता भी कम नहीं
इससे पहले राजस्थान में कांग्रेस नेता शांति धारीवाल ने बलात्कार के सवाल पर विधानसभा में राजस्थान को मर्दों का प्रदेश कहा था, जिसमें मर्द होना ही दंभ से भरा नजर आया। यहां सिर्फ धर्म या जाति नहीं मर्द होने का दंभ भी अलग ही है। बाकी नेताओं की बात करें तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि रेप के मामलों में फांसी नहीं होनी चाहिए, लड़कों से गलती हो जाती है।
जबकि 2018 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बलात्कार के लिए सीधे तौर पर लड़कियों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। मनोहर लाल खट्टर ने कहा, “रेप की घटनाएं बढ़ी नहीं हैं। पहले भी इतनी ही घटनाएं होती थीं। अब ये घटनाएं 80 से 90 प्रतिशत जानकारों के बीच में होती हैं। लड़का-लड़की एक दूसरे को जानते हैं। साथ घूमते हैं और लड़के से कुछ गड़बड़ हो जाए तो उस दिन लड़की झूठी एफआईआर देती हैं कि इसने मुझे रेप किया। बलात्कार ही नहीं वे महिलाओं की समानता के अधिकार की मांग पर भी अपवादित बयान दे चुके हैं। खटटर ने कहा था कि अगर महिलाएं इतनी ही स्वतंत्रता चाहती हैं, तो वे सिर्फ नग्न होकर घूमने क्यों नहीं जाती? इस स्वतंत्रता को सीमित करना होगा।
खैर, अगले बयान पर आते हैं। 9 जून 2019 को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार में मंत्री उपेंद्र तिवारी ने रेप के बढ़ते मामलों पर कहा था कि रेप का नेचर होता है, अगर नाबालिग लड़की के साथ रेप हुआ है तो उसको तो हम रेप मानेंगे, लेकिन महिला विवाहित है, उम्र 30-35 साल है तो ऐसे रेप का अलग नेचर है। इसमें प्रेम का प्रपंच होता है। राजस्थान में भाजपा नेता कालीचरण सराफ ने जुलाई 2019 में जयपुर में 7 साल की बच्ची से बलात्कार के बाद कहा था कि बलात्कार ऐसी चीज है जो कभी नहीं रुक सकती।
और इसी तरह नेता कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि मर्यादा का उल्लंघन होता है तो सीता-हरण हो जाता है। लक्ष्मण रेखा को कोई भी पार करेगा तो रावण सामने बैठा है। तो सीता यानी महिलाओं को सीमाओं में रहना है, ताकि वे ऐसे हादसों का शिकार ना हों।वहीं 2021 के बदायूं गैंगरेप पर भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि शासन और तलवार से बलात्कार रोकने की कोशिश की जाती है तो ये संभव नहीं है। लोग अपनी जवान बेटियों को इसके लिए संस्कारी बनाएं।
हर नेता में ट्रंप..
इन संस्कारी बातों के बीच एक ही बात कॉमन है कि लगभग हर नेता में ट्रंप है। चाहे वो अमरीका का हो या भारत का। स्त्रीद्वेष से भरे इन नेताओं को जनता चुनती है तो कई सवाल उठते हैं। समाज और देश और दुनिया को अभी इस लैंगिक भेद, लैंगिक असमानता से बाहर निकलने के लिए कई और चुनावों का इंतजार करना होगा।