रैली के दौरान कही ये बात
दरअसल ट्रंप ने पेन्सिलवेनिया में एक रैली के दौरान कहा है कि उन्हें 2020 के चुनाव परिणाम को स्वीकार करते हुए वाइट हाउस छोड़ना ही नहीं चाहिए था। रैली में ट्रंप ने एक बार फिर 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में मतगणना प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। इससे यह आशंका पैदा हो गई कि अगर वह हैरिस से हार गए तो 5 नवंबर के मतदान के नतीजे को स्वीकार नहीं करेंगे। ट्रंप ने अपने भाषण में बाइडन प्रशासन की प्रवासी नीति पर एक बार फिर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब तक वह वाइट हाउस में थे तब तक देश की सीमाएं सुरक्षित थीं। इसलिए, मुझे जाना ही नहीं चाहिए था। मेरा मतलब ईमानदारी से है, क्योंकि हमने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए बहुत अच्छा काम किया था। उधर, कमला हैरिस भी अपने चुनावी अभियान में तेजी लाते हुए लेडी गागा और ओपरा विनफ्रे जैसी हस्तियों को अपने मंच पर लाने में सफल हुई हैं। दोनों सेलिब्रिटी हैरिस के मंच पर नजर आएंगी।
तीन तरीकों से होगा मतदान
हाथ से मार्क किया गया मत पत्रः अमेरिका के चुनाव में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होना वाला मतदान का तरीका है। इसमें मतदाता अपने हाथ से मतपत्र पर उम्मीदवार के पक्ष में अपना फैसला मार्क करता है। 69।9 मतदाता ऐसे ही क्षेत्रों में रहते हैं, जहां हाथ से अंकित किए जाने वाले मतपत्र का प्रयोग होगा। बैलट मार्किंग डिवाइस के जरिए मतदानः इसमें मतदाता के समक्ष मतदान केंद्र पर एक कंप्यूटर स्क्रीन होती है, जिससे मतदान किया जाता है। इसके बाद मतदाता इसका प्रिंट मतगणना बॉक्स में डालता है। इसी के जरिए मतगणना होती है। 25।1 फीसदी अमरीकी ऐसे ही क्षेत्र में रहते हैं, जहां इस तरह से मतदान होता है। ईवीएम या डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिकः इसमें मतदान और इसका संग्रह दोनों ही डिजिटल डाटा के सहारे ही होता है। लगभग 5 फीसदी अमरीकी ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां इन इलेक्ट्रानिक मशीनों के जरिए मतदान किया जाता है।
चुनाव आयोग की निगरानी में होंगे चुनाव
अमरीका 50 राज्यों में बंटा एक देश है, जहां चुनाव से जुड़ा सारा जिम्मा संघीय चुनाव आयोग (एफईसी) के पास नहीं है। बल्कि हर राज्य की अपनी चुनाव प्रक्रिया और नियम हैं। हालांकि एफईसी जैसी कुछ संघीय संस्थाएं हैं जो समग्रता से नजर रखती हैं। साथ ही, इलेक्शन असिस्टेंस कमीशन है, जिसका काम राज्यों को चुनाव के लिए तकनीकी मदद और प्रशिक्षण देना है। यह वोटिंग टेक्नोलॉजी, वोटिंग के उपकरण जैसे काम संभालती है। इसके अलावा हर राज्य के अपने चुनाव आयोग हैं, जिसका काम तय तारीख पर इलेक्शन कराना और नतीजे घोषित करना है। लेकिन समग्रता में देखें तो, अमेरिका के संघीय चुनाव आयोग की शक्ति भारतीय चुनाव आयोग की तुलना मेंकाफी सीमित हैं। वो केवल फंडिंग पर नजर रखता है। पर, राजनीतिक फंड में गड़बड़ी की जानकारी पर वो सीधे-सीधे सजा भी नहीं सुना सकता क्योंकि अक्सर इन फैसलों को कोर्ट में चुनौती दे दी जाती है।
केंद्रीय सरकार का कोई दखल नहीं
इस तरह अमेरिका में राज्य चुनाव आयोग ज्यादा शक्तिशाली हैं। दरअसल अमेरिका में इलेक्शन का ढांचा ऐसा है कि हर राज्य को अपने मुताबिक नियम बनाने का अधिकार है। यही वोटरों का पंजीकरण करता है। वोटिंग की प्रोसेस से लेकर मतगणना और नतीजे घोषित करने तक सारा काम यही देखता है। स्टेट कमीशन अपनी जरूरत के अनुसार नियम बना सकती है, केंद्रीय सरकार इसमें कोई दखल नहीं देती है। हां, इतना जरूर है कि स्टेट कमीशन को भी फेडरल नियमों का पालन करना होता है।