अमरीका में अनुसंधान को झटका
पिछले कुछ सालों में सैंकड़ों चीनी वैज्ञानिकों ने अमरीकी विश्वविद्यालयों से चीन के संस्थानों में संबद्धता बदल ली है। इनमें जूनियर और सीनियर दोनों पदों पर कार्यरत नौकरी छोड़ने वालों की संख्या में तेजी आई है। अमरीका की प्रिंसटन, हार्वर्ड और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े विशेषज्ञों की एक टीम ने गत वर्ष किए शोध में पाया कि देश में अपना कॅरियर शुरू करने वाले चीनी मूल के लगभग 20,000 वैज्ञानिक 2010 से 2021 के दौरान चीन सहित अन्य राष्ट्रों में चले गए।
दशकों के योगदान के बाद लौट आए अपने देश
मशहूर चीनी गणितज्ञ याउ शिंग-तुंग ने बीजिंग में सिंघुआ विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय छोड़ दिया। अमरीकी नौसेना और अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए भी काम कर चुके मरीन डाटा विशेषज्ञ ली झिजिन अब शंघाई के एक शीर्ष विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं। जियांग-डोंग फू, जिन्होंने अपने विदेशी संबंधों के संदेह के कारन कैलिफोर्निया छोड़ दिया था, फिलहाल दक्षिणी चीन के वेस्टलेक यूनिवर्सिटी से जुड़ गए हैं। इच मैकेनिज्म के अध्ययन में अग्रणी विशेषज्ञ चेन झोउफेंग, अमरीका में 33 सालों तक काम करने के बाद दक्षिणी चीनी शहर शेंजेन में एक संस्थान से जुड़ गए।
नेचुरल-साइंस जर्नल में सबसे बड़ा योगदानकर्ता
2021 के दौरान ही अमरीका छोड़ने वाले चीनी मूल के 1500 वैज्ञानिक ज्यादातर गणित, भौतिक विज्ञान, लाइफ साइंस, इंजीनियरिंग और कम्प्यूटर साइंस में काम करने वाले थे। वैज्ञानिक अनुसंधान के मामले में अमरीका और चीन में प्रतिस्पर्धा बनी रही है। चीन ने वैज्ञानिक रिसर्च पेपर्स की क्वालिटी और क्वांटिटी के मामले में अपनी वैश्विक बढ़त बनाए रखी है, जो देश की तीव्र स्वतंत्र अनुसंधान प्रणाली का प्रमाण है। नेचुरल-साइंस से जुड़े जर्नल में सबसे बड़े योगदानकर्ता के रूप में भी चीन, अमरीका से आगे है।
वैज्ञानिक शोध पत्रों के मामले में प्रमुख देश (डाटा- 2019-2021 के दौरान)
देश | शोध पत्रों की संख्या |
चीन | 4,50,000 |
अमरीका | 3,00,000 |
भारत | 80,000 |
जर्मनी | 75,000 |
जापान | 70,000 |
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