नीदरलैंड से विशेष रिपोर्ट
Netherlands News : विदेश में प्रवासी भारतीयों ने हिन्दी भाषा की अलख जगाने में अहम किरदार निभाया है। प्रवासी भारतीय ( NRI) साहित्यकार डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ( Dr. Ritu Sharma Nannan Pandey) ने नीदरलैंड से विशेष आयोजन की रिपोर्ट भेजी।बाल साहित्य की भूमिका
उन्होंने कहा “ बच्चों कोमल मन को ध्यान में रख देश -साहित्य और संस्कृति को माध्यम बना कर बच्चों के लिए हम जो साहित्य लिखते है,उसी को बाल साहित्य माना जाता है। नीदरलैंड से इस कार्यक्रम की समन्वय व प्रस्तुतकर्ता डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बाल साहित्य की भूमिका बताई।लोकल से ग्लोबल हो गए
प्रवासी भारतीय साहित्यकार डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बताया कि विषय प्रवर्तन के रूप में विराजमान वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक व आलोचक सूर्यकांत शर्मा ने बाल साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम लोकल से ग्लोबल हो गए हैं, टेलीविजन पर बहुत अधिक बच्चों के चैनल आ गए हैं। इसलिए हमें बाल साहित्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। सरकार को इसके लिए पुस्तक नीति बनानी चाहिए।प्रकाशकों को ईमानदार रहना होगा
उन्होंने कहा कि प्रकाशकों को लेखकों के प्रति ईमानदार रहना होगा। पुस्तक मेले में बाल साहित्य को बढ़ावा मिलना चाहिए। बाल साहित्य और साहित्यकारों को एक ऐसा मंच मिलना चाहिए, जहां वे अपनी बात कह सकें। बाल साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमर्श से जोड़ना आवश्यक है।ख़ज़ाना बिखरा पड़ा
विशिष्ट अतिथि बाल पत्रिका ज्ञानार्जन पत्रिका के संपादक उत्तराखंड के वरिष्ठ बाल साहित्यकार मोहन जोशी गरूड़ ने कहा कि बाल साहित्य एक महत्वपूर्ण विषय है, जो जाने अनजाने में कहीं छिप जाता है। देश विदेश में बाल साहित्य के लोक कथाओं, कहानियों,लेख निबंध और मानवीय मूल्यों पर आधारित साहित्य गीतों,लोरियों व कविताओं का ख़ज़ाना बिखरा पड़ा है। यदि हम भारत में इस ख़ज़ाने को पुस्तकों के रूप में समाहित कर सकें या किसी वेबसाइट से समाहित कर सके तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों, का आदान-प्रदान का बहुत सफल प्रयोग होगा।
ई पत्रिकाओं का प्रकाशन हो
उन्होंने कहा कि ई पत्रिकाओं का प्रकाशन होना चाहिए। बाल पत्रिकाओं के पंजीकरण में आने वाली कठिनाइयों को सरल किया चाहिए। लेखन व प्रकाशन दोनों के लिए पुरस्कार होने चाहिए। लेखकों को बाल लेखन में नवीनता लानी होगी, तभी हम बच्चों को वर्तमान युग से सही पहचान कराने में सफल हो सकेंगे।बाल साहित्य भी एक महत्वपूर्ण धारा
डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मीना अरोड़ा को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनसे प्रश्न किया -क्या अनूदित बाल साहित्य मौलिक बाल साहित्य से कमतर आंका जाना चाहिए? मुख्य अतिथि मीना अरोड़ा ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा:साहित्य की अन्य धाराओं की तरह बाल साहित्य भी एक महत्वपूर्ण धारा है। यह आज के दौर की अनिवार्य आवश्यकता है। बाल साहित्य की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। हमारे लिए यह दुख का विषय है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चों को पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रखा जाता है। माता-पिता बच्चों को खिलौने, वीडियो गेम इत्यादि तो उपलब्ध करवाते हैं, लेकिन बाल पत्रिकाओं की ओर उनका ध्यान कम ही जाता है।
हिन्दी में अनूदित बाल कहानियां
उन्होंने कहा कि वैसे तो हिन्दी बाल साहित्य बहुत समृद्ध है। इनमें अनूदित बाल साहित्य का योगदान बहुत अधिक है। बहुत से प्रकाशन गृह और संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। हिन्दी में अनूदित बाल साहित्य में सबसे अधिक अनुवाद अंग्रेजी से हिन्दी में हुए हैं। इनमें सबसे अधिक अनुवाद कहानियों का हुआ है। इक्कीसवीं सदी में इस दिशा में सबसे अधिक कार्य हुआ है।बाल साहित्य बहुत ही लाभान्वित
डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कहा कि अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित बाल कहानियां विविधता की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध हैं। इनमें आम जीवन की कहानियां, पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियां, पर्यावरण की कहानियाँ, जीवनी की कहानियां आदि प्रमुख हैं। अभी हाल ही में डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने नीदरलैंड्स की बाल कहानियों का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर उन्हें प्रकाशित करवाया है, जिससे बाल साहित्य बहुत ही लाभान्वित हुआ है।लोक कथाएं बहुत लुभावनी
इस कार्यक्रम की समन्वय व संचालिका डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे अनूदित नीदरलैंड्स की लोक कथाएं बहुत ही लुभावनी और रोचक बाल कहानियां हैं। मेरी दृष्टि में बच्चों को कहानियों के साथ बाल कविताओं के माध्यम से बहुत सा ऐसा ज्ञान देना चाहिए कि उन्हें खाने पीने,पढ़ने जीवन जीने के सही तौर तरीकों का बचपन से ही अभ्यास हो जाए। बाल कविताओं और कहानियों के माध्यम से बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम,देश प्रेम, बड़ों का आदर जैसी नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जा सकता है।बच्चों के लिए समय निकालें
मुख्य वक्ता इंदौर की वरिष्ठ साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार डॉ सुनीता श्रीवास्तव ने आज का बाल साहित्य बच्चों को सोशल मीडिया,इंटरनेट के जाल से मुक्त करने में किस तरह सहायक हो सकता है? प्रश्न का उत्तर देते कहा कि- हम आज बहुत आसानी से बच्चों पर दोषारोपण कर देते हैं कि बच्चे सारा समय फ़ोन में सोशल मीडिया या इंटरनेट पर समय बिताते हैं, लेकिन क्या हम अपने बच्चों के लिए समय निकाल पाते हैं? आज भागदौड़ की ज़िंदगी में हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने बच्चों के लिए उनके साथ बैठने , बातें करने का समय ही नहीं निकाल पाते ।वह समय बीत गया
डॉ सुनीता श्रीवास्तव ने कहा कि पहले संयुक्त परिवार होते थे सब साथ मिलकर रहते थे। दादा दादी से वह कहानी सुना करते थे ,रामायण-गीता घरों में सुनी पढ़ी जाती थी अब वह समय बीत गया है। एकल परिवार है जहां मां और पिता दोनों राम पर जाते हैं बच्चों को या तो आया पालती है या डे बोर्डिंग स्कूल। इसलिए आज के समय में यह आवश्यक है कि माता-पिता स्वयं पढ़ने की आदत डालें और बच्चों को पुस्तकालय जाना सिखाएं, उन्हें उपहार में पुस्तकें दें और साथ बैठ कर पढ़ें तो बचते अवश्य ही इंटरनेट के जाल से मुक्त हो सकेंगे । आज के समय में बच्चों व किशोरों में बढ़ते मानसिक अवसाद से बाहर निकलने के लिये अच्छा बाल साहित्य बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है।चांद सितारे छूने दो
कार्यक्रम के अध्यक्ष व साहित्य को साहित्यकार नरेन्द्रसिंह ने डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे के प्रश्न-बाल साहित्य की समीक्षा व समीक्षक के मूल बिंदु पर चर्चा कविता की दो लाइनों से की :बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो,
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे ।
साहित्य केवल बड़ों के लिए ही नहीं
उन्होंने कहा कि शरारत व शिकायत बच्चों और बचपन के लिए बहुत आवश्यक है । बाल साहित्य साहित्य की अलग विधा नहीं, साहित्य का सोपान है, वहीं से हो कर साहित्य को जाना है। बाल साहित्य केवल बड़ों के लिए ही नहीं है। बाल साहित्य विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में पढ़ाना चाहिए, ताकि वह अच्छे अभिभावक बनें। बाल साहित्य को बाल साहित्य की समीक्षा करते समय पुस्तक की विषय वस्तु पर ध्यान देना आवश्यक होता है।भाषा सरल व चुटीली हो
नरेन्द्रसिंह ने कहा कि यदि पुस्तक का विषय बालकों की रुचि के अनुसार नहीं है तो फिर उस लेखन का बाल साहित्य में कोई औचित्य नहीं रह जाता है। उस पुस्तक में बाल मनोविज्ञान को कितना ध्यान में रखा गया है? लेखन की शैली रोमांचक है या नहीं? संवादों की भाषा सरल व चुटीले व संक्षिप्त होना भी आवश्यक है। लेखन में नवीनता होनी चाहिए और उपदेशात्मकता से बचना होगा। उन्होंने “जूते घूमने निकले”;पुस्तक की समीक्षा का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि शीर्षक जिज्ञासु व आकर्षक होंगे तभी बच्चे उस पुस्तक या रचना को पढ़ने में रुचि लेंगे।रचना अपने ही परिवेश का बोध कराए
उन्होंने कहा कि कहानी या रचना का वातावरण ऐसा होना चाहिए, जो हर बाल पाठक को अपने ही परिवेश का बोध कराए। इन सभी बिंदुओं को यदि ध्यान में रखा जाए तो एक उत्तम समीक्षा तैयार की जा सकती है। किसी पुस्तक की समीक्षा के लिए उसका पुरस्कृत होना आवश्यक नहीं है। भारत में जहां पाठक है वहां पुस्तक नहीं है और जहां पुस्तक है, वहां पाठक नहीं है, यह बड़ी विडंबना है। भारत में बच्चों पर पाठ्यक्रम का बहुत बोझ रहता है, जिससे उन्हें अन्य पुस्तकें पढ़ने का समय कम मिल पाता है। इस पर उन्होंने अपनी एक कविता का उदाहरण दिया : ठूंस ठूंस के भरी किताबें , हो गया बसता भारी
झूरी पीठ बता रही है बालक की लाचारी ….
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