वर्क एंड लाईफ

आज भी घूंघट की मजबूरी क्यों

घूंघट में कैद रखने की बजाय बिन घूंघट के जीने दिया जाए तो हम अंकिता -सी बेटियां सारा जहां बदल सकती है ।

Mar 26, 2018 / 05:13 pm

जमील खान

Purdah System

हमारे समाज में विवाह के बंधन में बंधने के बाद लड़की को यकायक और यकीनन स्त्री के रूप में हम देखने लग जाते है। उससे हम न जाने कितनी ही अनगिनत आशाएँ रखने लग जाते है । ससुराल वाले भी अभी – अभी मासूमियत की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए नवोढ़ा बनी बाला से अनंत अपेक्षाओं के झंझावतों के पहाड़ लादने लग जाते हैं । ससुरालवालों के दिमाग में भी तो मान- सम्मान और मर्यादाओं के मृतप्रायः हो बैठे ख़्वाबों का अचानक कुलांचे भरना अचंभित कर देने वाला होता है ।

अपने नये आशियाने को सजाने – संवारने ससुराल की ओर कदम बढ़ाये जा रही अंकिता के लिए अभी सिर ढककर चलना थोड़ा बहुत मुश्किल भरा है. एक ऐसी लड़की जो विवाह से पहले उसके मां – बाप के घर में एक लाडली बेटी के रूप में पूरी आज़ादी के साथ रहती है। शादी के तत्काल बाद ही ऐसा क्या बदल जाता है कि एक लड़की एक नारी बनने का जतन करने लग जाती है।

अपनी बचपन की सहेली अंकिता से शादी के बाद मिलने गई तो ऐसा ही कुछ नजर आया। हम अंकिता के बुलावे पर ही हम आज उसके घर पहूंचे तो , उसके मम्मी- पापा ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया । अंकिता शायद उस वक्त कुछ सामान लेने बाहर गयी हुई थी । आंटी ने कहा था कि बस पांच मिनट में वह आ ही रही होगी । हम सब लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे ।

हम दोस्तों के मन में सवालों के उबाल उस वक्त हमारे हाव-भावों से साफ़ देखे जा सकते थे । नई – नवेली दुल्हन बनी अंकिता को देखने की हम सब में जो लालसा थी वह बडी अजीबोगरीब थी । कुछ देर बाद अंकिता अपने घर की चारदीवारी का गेट खोलकर अंदर आते दिखाई दी । अंकिता आज मेहरुम कलर की साड़ी पहने हुए थी। उसका चेहरा अब भी मासूमियत का दीदार करा रहा था ।

मगर वो अपना सिर ढके हुए थी शायद ससुरालपक्ष के गैरज़रूरी रीति रिवाजों के आगोश में आने की छटपटाहटों से वो झुझ रही थी । बिंदास बाला से नारी रुप में खुद को बदलने का अंधरुनी संघर्ष करती अंकिता के दिल की बात हम दोस्तों से ज़्यादा भला कौन समझ सकता था ! दुनिया भर के ज़ैवर पहने हुए अंकिता ठमक- ठमक -सी चाल लिए हमारी ओर सीधे ही चली आ रही थी । पास में आते ही उसने चेहरे से घुंघट को ऐसे हटाया जैसे कोई कैदी बेडियों को दूर फेंकता है । हम सबसे मिलकर अंकिता सचमुच बहुत प्रसन्न हुई , बेशक हमें भी बहुत ख़ुशी हुई । हम सभी दोस्तों ने उसकी बहुत टांग खिंचाई की , हद से कई गुना ज़्यादा हमने मजाक भी किया । जो कि हम दोस्त लोग अक्सर एक -दूसरे को किया करते है !


उसके लिए सिर ढककर चलना बस अनिवार्य हो गया ! शायद ससुराल में भी पीहर की तरह वही आज़ादी दी जाए तो कभी ससुराल को ससुराल की नज़र से नहीं देखा जायेगा। अगर यह सच हो जाए तो ससुराल किसी पीहर से कम नहीं लगेगा । समाज में अगर बदलाव लाना है तो इसकी शुरूआत हमें हर एक को अपने ही घर – परिवार से करनी होगी। वैसे शर्म तो आखों में होती है और इज़्ज॒त हमारे दिल में होती है घुंघट से भला क्या वास्ता ?

घूंघट में कैद रखने की बजाय बिन घूंघट के जीने दिया जाए तो हम अंकिता -सी बेटियां सारा जहां बदल सकती है । देश के हर एक परिवार में बहूओं को बेटियों की तरह ही रखा जाना चाहिए । हर एक बहू को भी अपने सास – ससुर को अपने मां – बाप की तरह ही प्यार और इज़्जत देनी चाहिए ,इससे हमारा समाज कभी नहीं पिछड़ेगा क्योंकि समाज में जब नारी ख़ुश रहेगी तब समाज भी उतना ही उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा । यदि समाज का हर एक व्यक्ति नारी को प्राथमिकता देगा , उसकी ख़ुशियों का ख़्याल रखेगा तो देश को आगे बढने से कोई नहीं रोक सकेगा ।

करिश्मा डायर

Hindi News / Work & Life / आज भी घूंघट की मजबूरी क्यों

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.