महिला स्वास्थ्य

अगर पीरियड्स मिस हो जाएं तो उसे सामान्य बात न मानें, हो सकते हैं गंभीर कारण

पीरियड एक सामान्य प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है। यह कोई रोग नहीं है। पीरियड्स की शुरुआत का मतलब है कि शरीर का संभावित गर्भावस्था के लिए तैयार होना। बदलती जीवनशैली के चलते देखा गया है कि महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता के मामले बढ़ रहे हैं।

Jun 25, 2023 / 07:01 pm

Jyoti Kumar

पीरियड एक सामान्य प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है। यह कोई रोग नहीं है। पीरियड्स की शुरुआत का मतलब है कि शरीर का संभावित गर्भावस्था के लिए तैयार होना। बदलती जीवनशैली के चलते देखा गया है कि महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले अंक में प्राइमरी अमेनोरिया की समस्या के बारे में बताया गया। इस बार पीरियड्स की एक और अनियमितता के बारे में बताएंगे जो है सेकंडरी अमेनोरिया।

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क्या है सेकंडरी अमेनोरिया
यह तब होता है जब सामान्य मासिक चक्र शुरू होने के बाद बीच में लगातार तीन महीने तक पीरियड्स न आए। प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान यह सामान्य है, लेकिन नियमित दिनचर्या के समय यदि ऐसा होता है तो यह इस बात का भी संकेत देती है कि कुछ स्वास्थ्य समस्या है। जिन महिलाओं में पीरियड्स अनियमितता रहती है, उनमें मासिक धर्म छह माह तक भी अनुपस्थित रहता है। इसे ही डॉक्टरी भाषा में सेकंडरी अमेनोरिया कहते हैं।

थायरॉइड: थायरॉइड हार्मोन नियमन में गड़बड़ी पीरियड्स की अनियमितता का एक ज्ञात कारण रहा है, हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति मासिक धर्म चक्र पर असर डालती है। इसमें डॉक्टरी परामर्श जरूरी है।

पिट्यूटरी हार्मोन: हाइपोथैलेमस या पिट्यूटरी में विकृति मासिक धर्म चक्र के काम करने के तरीके को बदल सकती है। यह सेकंडरी अमेनोरिया का कारण बन सकती है। चिकित्सकीय सलाह लें।

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पीसीओडी: पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज महिलाओं को प्रभावित करने वाला एक अंत:स्रावी विकार है। यह प्राइमरी और सैकंडरी अमेनोरिया का कारण हो सकता है। यह ओवेल्यूशन को प्रभावित करती है।

वजन व तनाव: मोटापा सेकंडरी अमेनोरिया की बड़ी वजह है। अगर वजन अधिक है तो यह पीरियड्स पर असर डालता है। तनाव से हार्मोनल असंतुलन हो सकता है जो मासिक चक्र पर सीधा असर डालता है।

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ये हैं वजह :
स्तनपान के दौरान पीरियड्स मिस होना भी अमेनोरिया है। यह प्रोलैक्टिन और एलएच के निम्न स्तर की उपस्थिति के कारण होता है, जो ओवेरियन हार्मोन स्राव को दबा देता है। यह छह माह से एक वर्ष तक रह सकता है।

हार्मोन थैरेपी से इलाज
इस समस्या में स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श बेहद जरूरी है। इसकी वजह से गर्भधारण में समस्या आ सकती है। इसमें थाइरॉइड या पिट्यूटराइन हार्मोन जैसे कारणों में हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी दी जाती है। पीसीओडी जैसी बीमारी के बारे में पता चलता है तो डॉक्टर लाइफस्टाइल मैनेजमेंट के बारे में भी बताते हैं।

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दिनचर्या संतुलित रखें
डाइट का ध्यान रखें। साबुत अनाज, सब्जियां और बीजों में पाए जाने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड का अधिक सेवन करें।
सोने-जागने का समय तय करें।
पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं। कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन से बचें।
अपने वजन को वॉक व व्यायाम से नियंत्रित रखें।

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