बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में इस बात का जिक्र मिलता है। इसमें लिखा गया है कि लंका पहुंचकर हनुमान जी ने माता सीता को ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की।इसके बाद भी जब माता सीता नहीं मिली तो हनुमान जी ने उन्हें मृत मान लिया, लेकिन तभी उन्हें प्रभु श्रीराम का स्मरण हुआ और दोबारा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अशोक वाटिका में उन्होंने सीता मइया को खोजना शुरू कर दिया।
तब जाकर अशोक वाटिका के अंदर ही उन्हें सीता माता मिल गईं। इस बात पर ही सीता मइया ने उन्हें अमरता का वरदान प्रदान किया। तब से लेकर आज तक हनुमान जी धरती पर श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं।
हालांकि प्रभु श्रीराम का धरती पर रहने का एक निश्चित समय था। यह पहले से ही तय था कि धरती पर अपने काम को पूरा कर वह वापस स्वर्ग लौट जाएंगे। जब हनुमान जी को इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुए।
हनुमान जी सीता मइया के पास गए और उनसे पूछा कि उनके प्रभु जब धरती पर रहेंगे ही नहीं तो उनका यहां क्या काम! हनुमान जी जिद करने लगते हैं कि उनसे अमरता का वरदान वापस ले लें।
माता सीता हनुमान जी की इस स्थिति को देखकर प्रभु श्रीराम का ध्यान कर उन्हें वहां बुलाती हैं। श्रीराम कुछ ही देर में वहां प्रकट होते हैं और हनुमान जी को गले लगाते हैं।
प्रभु श्रीराम उनसे कहते हैं कि धरती पर एक समय ऐसा आएगा जब यहां पापी लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाएगी और उस परिस्थिति में कोई भी देवता यहां अवतार लेकर नहीं आएंगे। ऐसे में राम भक्तों का बेड़ा पार उन्हें ही लगाना होगा।
प्रभु के समझाने पर हनुमान जी अमरता के वरदान को समझ पाते हैं और इसे प्रभु श्रीराम की इच्छा समझकर स्वीकार करते हैं। इस वजह से कलियुग में भी जब कोई मुसीबत में पड़कर सच्चे मन से प्रभु श्रीराम को याद करता है तो हनुमान जी उसकी मदद जरूर करते हैं।