सबसे पहले हम आपको महाकवि विद्यापति का परिचय देते हैं। हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख कवियों में से एक हैं विद्यापति। एक अच्छे कवि होने के साथ-साथ विद्यापति भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त भी थे। भगवान शिव के प्रति यह उनका प्रेम ही था जिस वजह से उन्होंने शिव जी पर कई गीतों की रचना की।
मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव उनकी भक्ति से इस कदर प्रसन्न हुए कि वह रूप बदलकर उनके पास आ गए। यहां तक कि उनके साथ रहने के लिए शिव जी उनके नौकर तक बन गए थे। उनके घर पर काम करने के लिए शिव जी ने अपना नाम उगना बताया था। हालांकि विद्यापति ने उन्हें काम देने से इंकार कर दिया क्योंकि आर्थिक दृष्टि से वह सबल नहीं थे। इस पर शिव जी ने कहा कि उन्हें पैसा नहीं देना पड़ेगा बल्कि दो वक्त भोजन देने से ही चलेगा। आखिरकार कवि विद्यापति उन्हें घर पर रखने के लिए तैयार हो गए।
कहते हैं कि एक दिन विद्यापति राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी और चिलचिलाती धूप में उनका गला सूखने लगा। उनके साथ उस वक्त उगना (शिवजी) भी थे। विद्यापति ने उगना से पानी लाने के लिए कहा। आदेश पाकर शिव जी कुछ दूरी पर गए और अपनी जटा खोलकर एक लौटा गंगाजल भरकर लाए।
विद्यापति ने जैसे ही पानी पीया उन्हें पता लग गया कि यह गंगाजल है। इस पर वह काफी सोचते रहे कि आखिर यहां वन में गंगाजल कहां से मिला! कुछ देर बाद उन्हें संदेह हुआ कि कहीं उगना भगवान शिव तो नहीं हैं। यह विचार आते ही वह उगना के चरण पकड़ लिए। इसके बाद महादेव को अपने असली रूप में आना पड़ा। शिवजी ने उनसे कहा कि वह उनके साथ ही उगना बनकर रहना चाहते हैं, लेकिन किसी को यह सच्चाई पता नहीं लगनी चाहिए।
विद्यापति ने भी उनकी बात मान ली। इधर एक दिन उगना से एक गलती हो गई जिस पर विद्यापति की पत्नी उगना को चूल्हे की जलती हुई लकड़ी से पीटने लगी। विद्यापति यह देखकर दंग रह गए और उनके मुंह से निकल गया कि यह महादेव हैं और तुम इन्हें ही मार रही हो। विद्यापति ने जैसे ही यह कहा उसी वक्त भगवान शिव अंर्तध्यान हो गए।
विद्यापति को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह शिव जी को ढूंढ़ने के लिए वन में निकल पड़े। भक्त को हैरान-परेशान देख भोलेनाथ उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें समझाया कि वह अब उनके साथ नहीं रह सकते, लेकिन अब एक शिवलिंग के रूप में वह हमेशा उनके पास रहेंगे। उसके बाद से ही वहां स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हो गया।
उगना महादेव मंदिर के गर्भगृह में छह सीढ़ियां उतरकर जाना पड़ता है। यहां माघ कृष्ण पक्ष में नर्क निवारण चतुर्दशी के पर्व को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस वक्त जिस मंदिर को भक्त देखते हैं उसका निर्माण साल 1932 में किया गया है। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि साल 1934 में आए भूकंप से भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।
मंदिर के सामने एक सरोवर और एक कुआं भी है। इस कुएं के बारे में लोग कहते हैं कि यही वह जगह है जहां से शिव जी ने जटा खोलकर गंगाजल निकाला था। यहां आने वाले श्रदलु इस पानी को जरूर पीते हैं।