एक समय की बात है जब रक्तबीज नामक दैत्य ने कठोर तपस्या की। फलस्वरूप उसे वरदान मिला कि उसके शरीर से खून की एक भी बूंद जब धरती पर गिरेगी तो उससे सैकड़ों की संख्या में दैत्यों की उत्पत्ति होगी। अपनी इस शक्ति का प्रयोग कर वह निर्दोषों को सताने लगा। अपनी मनमानी करने लगा। तीनों लोेकों पर उसने अपना आतंक मचा दिया। उसने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों पक्षों के बीच भयंकर लड़ाई हुई।
देवताओं ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी उसे पराजित करने के लिए, लेकिन जब भी रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती, तो देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में राक्षस पैदा हो जाते। ऐसे में रक्तबीज को हराना नामुमकिन था। देवता गण इस परेशानी को सुलझाने के लिए मां काली की शरण में गए।
मां ने न आव देखा न ताव और राक्षसों का वध करना शुरू कर दिया, लेकिन मां जब भी रक्तबीज के शरीर पर वार करती तो उसके खून से और भी राक्षस आ जाते थे। इसके लिए मां ने अपनी जिह्वा का विस्तार किया। अब खून जमीन पर गिरने के बजाय मां की जीभ पर गिरने लगी। क्रोध से उनके ओंठ फड़कने लगी, आंखें बड़ी बड़ी हो गई।मां के विकराल रूप को देखकर सभी देवता परेशान हो गए। उन्हें शान्त करना किसी के बस की बात नहीं थी। दानवों की लाशें बिछने लगी।
मां को शान्त करने के लिए देवता गण शिव जी के शरण में गए। भगवान शिव ने मां काली को शान्त करने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी।
अंत में शिव जी उनके मार्ग पर लेट गए और जब मां के पैर उन पर पड़ी तो मां चौंक गईं। उनका गुस्सा बिल्कुल शांत हो गया।