इस बीमारी में इंसान की सीखने की क्षमता, सुनने और बोलने की क्षमता नाम मात्र की हो जाती है। कुछ जानकारों का कहना है कि श्लिट्ज़ी का जन्म 1901 में हुआ था। श्लिट्ज़ी की इस हालत की वजह से उसे कोई पालना नहीं चाहता था। फिर एक सर्कस में उसे “द मंकी गर्ल” का किरदार निभाने का काम मिला। लोगों को उसके शोज तो पसंद आते थे, लेकिन कभी उसे किसी ने अपनाया नहीं। सर्कस के इस शो की सफलता के बाद उसे एक फिल्म में काम करने को भी मिला। श्लिट्ज़ी की इस फिल्म के बाद उसे बंदरों के एक ट्रेनर ने गोद ले लिया। सुरतीस नाम के इस ट्रेनर ने श्लिट्ज़ी को बहुत प्यार दिया, लेकिन एक दिन सुरतीस की मौत हो गई। सुरतीस की बेटी ने उसकी मौत के बाद श्लिट्ज़ी को एक मेंटल हॉस्पिटल भेज दिया।
श्लिट्ज़ी वहां 3 साल रहा और धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ने लगी। श्लिट्ज़ी सर्कस की ज़िंदगी को याद कर उदास रहने लगा। उसकी बिगड़ती हालत को देख हॉस्पिटल ने उसे फिर से शोज करने की इजाज़त दे दी। कुछ दिनों सर्कस में काम करने के बाद श्लिट्ज़ी रिटायर हो गया, लेकिन वह हमेशा की अपनी ज़िंदगी में दुखी ही रहा। लोगों को हंसाने वाला श्लिट्ज़ी अब हताश हो चुका था। 70 की आयु में आखिरकार श्लिट्ज़ी इस दुनिया को अलविदा कह गया। जब उसे दफनाया गया तो उसकी कब्र पर उसका नाम तक नहीं लिखा गया था। 2007 में श्लिट्ज़ी के एक प्रसंशक ने उसकी कब्र पर उसका नाम लिखवाया जिसके बाद वह फिर से खबरों में आ गया।