15 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

क्यों पड़ा इस आम का नाम ‘लंगड़ा’, 300 साल पहले ऐसे बोया गया था बीज

आखिर आम की इस प्रजाति का नाम लंगड़ा क्यों रखा गया? क्या इतिहास है इस नाम के पीछे?

3 min read
Google source verification

image

Priya Singh

Sep 24, 2018

लंगड़ा आम

क्यों पड़ा इस आम का नाम 'लंगड़ा', 300 साल पहले ऐसे बोया गया था बीज

नई दिल्ली। आम को फलों का राजा कहा जाता है और आम की प्रजातियों में लंगड़ा आम को सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया है। हमारे देश में 1500 किस्म के आम मिलते हैं, लेकिन इन सबमें लंगड़े आम का कोई तोड़ नहीं। मई से अगस्त के बीच आने वाले इस आम का रंग हरा या हल्का पीला होता है।बाजार में मिलने वाले अन्य आमों की तुलना में यह अधिक मीठा और मुलायम होता है। रेशेदार इस आम के दीवानों की संख्या लाखों में हैं।

लंगड़े आम की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में की जाती है। लंगड़ा शब्द का अर्थ हम सभी जानते हैं। अंग्रेजी में इसका मतलब है ‘लेम' यानि कि लंगड़ा। अब सवाल यह आता है कि आखिर आम की इस प्रजाति का नाम लंगड़ा क्यों रखा गया? क्या इतिहास है इस नाम के पीछे? आइए आपको बताते हैं ताकि अगली बार गर्मी में इसका स्वाद चखते हुए आप इसके बारे में लोगों को बताकर उन्हें चौंका दें।

आप सभी ने पदम श्री हाजी कलीमुल्लाह के बारे में जरुर सुना होगा। उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद में अपनी आम के किस्में उगाने के लिए ये मशहूर हैं। इनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में भी दर्ज है। श्री हाजी कलीमुल्लाह के पास है इस सवाल का जवाब।

वे कहते हैं कि, उनके मामू साहब ने लगभग 250-300 सालों पहले इसकी खेती की। उस दौरान वे बनारस में रहा करते थे। एकबार उन्होंने एक आम खाया और उसका बीज अपने घर के आंगन में लगा दिया। पैर से लंगड़ा होने के कारण उन्हें गांव के लोग लंगड़ा कहते थे। जब घर के आंगन में लगाए गए उस पेड़ ने फल देना शुरु किया तो सभी चौंक गए। उस आम का स्वाद बेहद मीठा और गूदे से भरा हुआ था। आगे जाकर लोगों ने इसे ‘लंगड़ा' नाम दिया।

अपनी बात को आगे जारी रखते हुए हाजी कलीमुल्लाह कहते हैं कि, हालांकि लंगड़ा आम देश में हर जगह मिलता है लेकिन जो स्वाद बनारस के आम में है वो और कहीं के आमों में नहीं। एक बार की बात है जब दिल्ली के तालकटोरा में आमों की प्रदर्शनी लगी थी। इसमें उन्होंने अपने कुछ अमरीकन दोस्तों को बुलाया था। उन्हें कई तरह के आम दिए गए, लेकिन उन्हें लंगड़ा ही सबसे ज्यादा पसंद आया। वाकई में लंगड़े आम की बराबरी करना वाकई में मुश्किल है। साल भर लोगों को इसका इंतजार रहता है और बाजार में कदम रखते ही इनकी खरीदारी शुरु हो जाती है।