कहा जाता है कि जहरीले जीव का जहर भी माता के चमत्कार के सामने बेअसर साबित होता है। मंदिर प्रांगढ़ की मिट्टी को लोग भभूत के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। मंदिर से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। बताया जाता है कि करीब चार सौ साल पहले जिले में तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। उसने सेंवढ़ा से रतनगढ़ आने वाले पानी को बंद कर दिया था। तब राजा रतन सिंह की बेटी मांडुला और उनके भाई कुंवर गंगाराम देव ने इसका विरोध किया था। उन्होंने भीषण जंगल में जल समाधि ले ली थी। तभी से माता रतनगढ़ और भाई कुंवर देव इस मंदिर में पूजे जाते हैं। उसी समय से यहां सर्पदंश से पीड़ित लोगों का जहर भी उतारा जाता है।
यह मंदिर पवित्र स्थान सिंध नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में देवी मां के दर्शन के अलावा कुंवर महाराज की भी पूजा की जाती है। इंसानों के अलावा जो पशु बीमार होते हैं उनका भी इलाज इस मंदिर में होता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर भाई दूज के दिन पशु को बांधने वाली रस्सी देवी मां के पास रखी जाए। इसके बाद उस रस्सी से दोबारा पशु को बांधा जाए तो वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।