एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया था कि आज से लगभग तीन हजार साल पहले पूर्वी एशिया के कुछ द्वीपों पर ही केवल लौंग का पेड़ हुआ करता था। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उन दिनों टर्नेट, टिडोर और उसके आस-पास स्थित कुछ द्वीपों में लौंग के पेड़ पाए जाते थे।
इस बात का फायदा वहां रहने वाले लोगों को भरपूर मिला। केवल लौंग का कारोबार कर वहां लोगों ने बहुत सारा पैसा इकट्ठा कर लिया। लोगों का ऐसा भी कहना है कि दुनिया का सबसे पुराना लौंग का पेड़ इंडोनेशिया के टर्नेट द्वीप पर है।
टर्नेट एक ऐसा द्वीप है जहां ज्वालामुखियों की भरमार हैं। यहां आने से पर्यटक खुद को रोक नहीं पाते हैं। यहां की खूबसूरती ही सबसे हटकर है। यहां तरह-तरह के जीव-जंतु पाए जाते हैं। यहां आने पर उड़ने वाले मेंढक भी आपका ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।
शायद इसी वजह से अंग्रेज वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वॉलेस ने उन्नीसवीं सदी में नई नस्लों की खोज के लिए यहां आए थे। अपने इस काम को अंजाम देने के लिए उन्होंने इन द्वीपों पर कई साल बिताया था। वहां से जब वह वापस लंदन गए तो उनके पास करीब सवा लाख से भी ज्यादा प्रजातियों के नमूने थे।
लौंग के व्यवसाय से जब टर्नेट और टिडोर के सुल्तानों के पास काफी पैसा आ गया तो खुद को सबसे ज्यादा ताकतवर समझने के चक्कर में वे आपस में ही लड़ने लगे और इसका फायदा अंग्रेज और डच कारोबारियों ने उन इलाकों पर कब्जा कर उठाया। इस वजह से सालों तक ये द्वीप यूरोपीय देशों के उपनिवेश रहें।