क्या आप जानते हैं कि कैसे हुई थी लक्ष्मण जी की मौत, श्रीराम के एक वचन से जुड़ा है इसका कारण
पौराणिक ग्रंथों के हिसाब से भगवान शंकर ने माता पार्वती से केदारनाथ के रास्ते में पड़ने वाले गुप्तकाशी में विवाह करने की इच्छा जताई थी जिसके बाद इस स्थान पर दोनों का विवाह संपन्न हुआ था। भगवान शंकर और माता पार्वती के इस विवाह में भगवान विष्णु ने मां पार्वती के भाई के रूप में सभी रीति- रिवाज़ों को निभाया तो ब्रह्मा जी ने पुरोहित बनकर विवाह में हिस्सा लिया साथ ही सभी संतों एवं मुनियों ने भी इस विवाह में हिस्सा लिया। कहा जाता है कि भगवान के विवाह से पूर्व सभी देवताओं ने यहां स्नान किया जिसके कारण यहां तीन प्रकार के कुंड बन गए जिन्हे रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है जिसका जल भगवान विष्णु से उत्पन्न हुए सरस्वती कुंड़ से आता है। इस सरस्वती कुंड की मान्यता है कि यहां स्नान करने वाले दंपत्ति कभी संतानहीन नहीं रहते हैं।
घी से धोया जाता है माता वरदायिनी का यह मंदिर, मान्यता है कि पूरी होती है लोगों की हर मनोकामना
जिस अग्नी के फेरे लेकर भगवान का विवाह हुआ था उसकी राख को यहां आने वाले भक्त अपने साथ ले जाते हैं इसके पीछे उनकी मान्यता है कि इससे उनका वैवाहिक जीवन भगवान शिव और माता पार्वती के जीवन की तरह ही मंगलमय बना रहता है। यह मंदिर त्रेतायुग में स्थापित हुआ मंदिर है जिसके कई ग्रंथों में उल्लेख भी मिल जाते हैं।