इसी बात पर घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुंचे। यहां सूर्यकुण्ड में जैसे ही वे स्नान करने को उतरे तो उनके सारे हथियार गल गए। लोहार्गल की महत्ता को पांडवों में समझा और इसे तीर्थ राज की उपाधि दी। आज भी राजस्थान में स्थित पुष्कर के बाद लोहार्गल को दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।
लोहार्गल का सूर्य मंदिर काफी प्राचीन और मशहूर है। कहा जाता है कि हजारों साल पहले सूर्यभान नामक एक राजा काशी में रहा करते थे। वृद्धावस्था में राजा के घर एक अपंग लड़की पैदा हुई। राजा ने ऐसा होने के पीछे की वजह को जानना चाहा। उन्होंने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं से अपने पिछले जन्म के बारे में पूछा।
ज्योतिषियों ने विचार कर कहा कि अपने पिछले जन्म में यह लड़की एक बंदरिया थी जिसकी जान किसी शिकारी के हाथों चली गई। शिकारी ने उसे एक बरगद के पेड़ पर लटका दिया और वहां से चल दिया। बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है और इस वजह से उसका शरीर हवा और धूप में सूख कर लोहार्गल के जलकुंड में गिर गया, लेकिन उसका एक हाथ पेड़ पर ही रह गया।
पवित्र जल में गिरने से उसे एक कन्या का शरीर प्राप्त हुआ और वह राजा के घर पैदा हुई। विद्वानों ने अनुरोध किया कि उस हाथ को भी कुंड के पानी में फेंक दें ताकि कन्या सम्पूर्ण रूप से ठीक हो जाए क्योंकि लोहार्गल सूर्यदेव का स्थान है।
राजा ने लोहार्गल जाकर वैसा ही किया और उनकी पुत्री बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इस चमत्कार से प्रसन्न होकर राजा ने यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवाया।
लोहार्गल आकर सूर्यदेव की उपासना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। पहाड़ियों से घिरे इस कुंड में स्नान करने दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। इससे त्वचा संबंधी कई रोगों से मुक्ति मिलती है।