अजब गजब

आज भी धरती पर ही भटक रहे हैं अश्वत्थामा! इस किले में छुपा है ये बड़ा रहस्य

मध्य प्रदेश में स्थित है भगवान शिव का ये मंदिर
सुबह का नजारा लोगों को हैरान करता है

Jan 03, 2020 / 03:15 pm

Prakash Chand Joshi

Is Ashwatthama still wandering on earth today

नई दिल्ली: महाभारत ( Mahabharat ) की कहानी आपने देखी और सुनी भी होगी। टीवी पर समय-समय पर इसकी कहानी को प्रसारित किया जाता है। इसके सभी किरदारों जैसे कौरव और पांडवों से सभी परिचित भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी धरती पर मौजूद है। शायद नहीं तो चलिए आपको इसके पीछे जुड़ी कहानी बताते हैं।

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महाभारत में वैसे तो कई पराक्रमी योद्धा थे, लेकिन अश्वत्थामा अकेले एक ऐसे योद्धा थे जो महाभारत के युद्ध को अकेले लड़ने की क्षमता रखते थे। वहीं कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के श्राप की वजह से आज भी अश्वत्थामा धरती पर ही भटक रहे हैं। इसी से जुड़ी एक कहानी है असीरगढ़ के किले की। मध्य प्रदेश ( madhya pradesh ) के बुरहानपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर ये किली स्थित है। माना जाता है कि असीरगढ़ किले के शिवमंदिर में अश्वत्थामा हर दिन सबसे पहले पूजा करने आते हैं। यहां जब लोग जाते हैं तो उन्हें यहां सुबह फूल और गुलाल चढ़ा मिलता है। कहा जाता है कि किले में स्थित तालाब में अश्वत्थामा स्नान करते हैं और फिर शिव मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। ये बात हर किसी को हैरान करती है कि यहां तपती गर्मी में भी ये तलाब कभी सूखता नहीं है।

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वहीं बताया जाता है कि मंदिर के चारों तरफ जो खाइयां मौजूद हैं, इन्हीं में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है। यही रास्ता खांडव वन से होता हुआ सीधे मंदिर में निकलता है और इसी रास्ते से अश्वत्थामा मंदिर के अंदर पूजा करने आते हैं। मान्यता है कि असीरगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट यानि नर्मदा नदी के किनारे भी अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। स्थानीय निवासियों के मुताबिक, कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। वहीं इसके पीछे कहानी बताई जाती है कि अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वधन कर दिया। साथ ही पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा करके अश्वत्थामा को दंड के रूप में उनके माथे की मणि ले ली और उन्हें तेजहीन कर दिया। साथ ही उनको श्राप भी दिया कि वो युगों-युगों तक भटकते रहेंगे।

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