नई पीढ़ी को ये मालूम हो सके कि इस डैम को बनाने में किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड इस ट्रेन का संचालन करता है। इस रेलवे ट्रैक को बनाने के लिए पहाड़ों को काटकर दुर्गम रास्ता बनाया गया था। इस ट्रेन को 1949 में पहली बार चलाया गया था। इस ट्रेन में लगभग 300 लोग हर रोज सफर तय करते हैं। इस ट्रेन से सबसे ज्यादा फायदा छात्रों को होता है।
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ये ट्रेन नंगल से डैम तक चलती है और दिन में दो चक्कर लगाती है। इस ट्रेन में सफर करते वक्त आपको ना तो कोई टीटीई मिलेगा, ना ही कोई हॉकर। इस ट्रेन की खास बात ये है कि इसके कोच लकड़ी के बने हुए हैं। यह ट्रेन डीजल इंजन पर चलती है, जिसमें हर रोज 50 लीटर डीजल खर्च हो जाता है। पहले इस ट्रेन में 10 बोगियां हुआ करती थीं, लेकिन अब सिर्फ 3 बोगियां ही रह गई हैं। जिसमें से एक बोगी पर्यटकों के लिए और एक बोगी महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है।भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड इस ट्रेन का संचालन करता है। इस ट्रेन के द्वारा भाखड़ा के आसपास के गांव बरमला, नेहला भाखड़ा,ओलिंडा, खेड़ा बाग, नंगल, कालाकुंड, स्वामीपुर, हंडोला, सलांगड़ी सहित अन्य क्षेत्रों के लोग सफर करते हैं। ये ट्रेन सुबह 7:05 पर ये ट्रेन नंगल से रवाना होती है और लगभग 8:20 पर ये ट्रेन भाखड़ा से वापस नंगल की तरफ आती है। वहीं एक बार फिर दोपहर में ये ट्रेन 3:05 पर ये नंगल से चलती है और शाम 4:20 पर ये भाखड़ा डैम से वापस नंगल को आती है।