एक वक्त की बात है जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना सोमनाथ मंदिर को तोड़ने के बाद मंदिर में रखे शिवलिंग को दिल्ली लेकर जा रहा थे। जालोर के राजा कान्हड़ देव चौहान को जब शिवलिंग के बारे में पता लगा तो उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर हमला कर दिया। इस युद्द में खिलजी की सेना हार गई। जीत के बाद कान्हड़ देव ने उस शिवलिंग को जालौर में स्थापित करवा दिया।
खिलजी इस हार को बर्दाश्त नहीं कर सका। बदला लेने के लिए उन्होंने विरामदेव को अपनी सल्तनत दिल्ली में आने का न्यौता दिया। विरामदेव उस समय के जालोर के सबसे बड़े योद्धा थे। वीरामदेव ने उस निमंत्रण को स्वीकारा और वह दिल्ली आए। इस बीच जब दिल्ली आये तो फिरोजा की नजर उन पर पड़ी। पहली नजर में ही वह विरामदेव को दिल दे बैठी।
फिरोजा विरामदेव से शादी करने की जिद करने लगी। अन्त में पिता को अपनी बेटी की जिद के आगे हार मानना पड़ा। वह विरामदेव से उसकी शादी कराने को राजी हो गए। खिलजी ने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव विरामदेव के पास भेजा, लेकिन विरामदेव ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
खिलजी को यह बात बुरी लगी और अपनी बेटी की ख्वाहिश पूरी करने के लिए उसने दोबारा जालोर पर हमला किया।अलाउद्दीन की ख्वाहिश थी कि वह किसी तरह राजा कान्हण देव और विरामदेव को युद्द में हरा कर विरामदेव को बंदी बनाकर अपनी बेटी की शादी उससे करवा देगा।
इसी के चलते अलाउद्दीन ने अपनी बहुत बड़ी सेना को जालौर भेजा था। सन 1368 के आसपास वीरमदेव के पिता कान्हड़ देव चौहान ने बेटे को सत्ता सौंपते हुए इस अंतिम युद्ध को करने की ठान ली। इस युद्ध में कान्हड़ देव मारा गया। पिता की मौत के बाद वीरमदेव ने कमान संभाली।
उन्होंने अंतिम क्षण तक हार ना मानते हुए अलाउद्दीन की सेना से लड़ाई की और उन्हें हरा दिया। हालांकि इस युद्ध में उन्हें विरगति प्राप्त हुई। इधर विरामदेव के मौत की मौत की खबर सुनकर फिरोजा खुद को संभाल नहीं सकी और गंगा में कूदकर अपनी जान दे दी।