दरअसल, लोंगयेरब्येन में साल 1917 में एक व्यक्ति की मौत इनफ्लुएंजा के कारण हो गई थी। उसके शव को तब शहर में दफना दिया गया था। बता दें, लोंगयेरब्येन शहर नार्वे के उतरी ध्रुव में स्थित है। यहां ज्यादातर ईसाई धर्म के मानने वाले लोग रहते हैं। इस जगह पूरे साल बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। इस वजह से यहां दफनाया गया शव कभी सड़ता या गलता नहीं है। वहीं इनफ्लुएंजा वायरस से मरे उस व्यक्ति के साथ भी यही हुआ।
साल 1950 में वैज्ञानिकों ने पाया की उस व्यक्ति का शरीर अभी भी जस का तस वैसा ही पड़ा है। साथ ही उसमें आज भी इनफ्लुएंजा के वायरस जिंदा हैं। इस इनफ्लुएंजा वायरस की वजह से बीमारी फैल सकती थी। इस जांच के बाद प्रशासन ने इस इलाके में लोगों के मरने पर रोक लगा दी है। वहीं अब अगर यहां कोई व्यक्ति मरने वाला होता है या उसे कोई इमरजेंसी आती है तो उस व्यक्ति को हेलिकॉप्टर की मदद से देश के दूसरे क्षेत्र में ले जाया जाता है। इसके साथ ही उसके मौत के बाद वहीं पर उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया जाता है।
वहीं इस शहर में एक बहुत ही छोटा सा कब्रिस्तान भी है जिसमें 72 सालों से किसी को दफनाया नहीं गया है। क्योंकि यहां इतनी ज्यादा ठंड और बर्फ होती है कि यहां दफनाए गए शरीर न ही जमीन में घुलते है न ही खराब होते हैं। इस शहर की आबादी करीब 2000 है। वहीं यहां के निवासियों को घातक बीमारियों के प्रकोप से बचाने के लिए यह कानून आज भी शहर में लागू हैं।