हम यहां साल 1963 के समय की बात कर रहे हैं। उन दिनों वियतनाम में 70 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले थे, लेकिन इसके बावजूद वहां की सरकार उनका उत्पीड़न कर रही थी। कैथोलिक चर्च और ईसाईयों को प्राथमिकता देने की वजह से सरकार का बौद्ध धर्म के अनुयायियों के प्रति रवैया नकारात्मक था।
सरकार ने बौधिष्ठ झंडों को फहराना गैरकानूनी करार दिया। अब इसके कुछ ही दिनों बाद गौतम बुद्ध जयंती का अवसर होने के चलते लोगों ने इसका विरोध किया। मौके पर बौद्ध धर्मावलंबी सरकार के नियम का विरोध करते हुए बौद्ध झंडों को फहराते हुए Government Broadcasting Station की तरफ चल दिए।
पुलिस ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई। वह 11 जून की सुबह थी। यहां के एक बौद्ध पगोडा से लगभग 350 बौद्ध भिक्षुक और संतों की एक टोली निकली। कम्बोडियन एम्बेसी के पास जैसे ही यह टोली पहुंची तब उनके सामने एक नीले रंग की कार आ रुकी। गाड़ी से थिच क्वांग डक अपने दो संतों के साथ उतरे।
दरअसल, संत थिच क्वांग डक ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह दक्षिणी वियतनाम में सरकार का बौद्धों के प्रति इस दुर्व्यवहार को रोकना चाहते थे। जनता को बचाने के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया।
मरने से पूर्व थिच क्वांग डक के अंतिम शब्द कुछ इस प्रकार से थे — इससे पहले कि मैं अपनी आंखें बंद करूं और बुद्ध की शरण में जाऊं, मैं राष्ट्रपति Ngo Dinh Diem से आदरपूर्वक निवेदन करता हूं कि वह अपने देश के लोगों के प्रति दया दिखाएं और धार्मिक समानता बरतें।
इस घटना की पूरी दुनिया में चर्चा होने लगी। इस घटना से दक्षिणी वियतनामी सरकार का पतन हुआ और बौधिष्ठ लोगों को अत्याचारों से मुक्ति मिली।