1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो दिल्ली में दो लोगों को धन संपत्ति के बंटवारे, उसके नियमों और शर्तों को तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसमें भारत के प्रतिनिधि थे एच. एम. पटेल और पाकिस्तान के चौधरी मुहम्मद अली को ये अधिकार दिया गया था कि वो अपने अपने देश का पक्ष रखते हुए इस बंटवारे के काम को आसान करें। भारत और पाकिस्तान में जमीन से लेकर सेना तक हर चीज का बंटवारा हुआ।
इस बंटवारे में से एक ‘गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स’ रेजीमेंट भी थी। इस रेजीमेंट का बंटवारा तो शांतिपूर्वक हो गया, मगर रेजिमेंट की मशहूर बग्घी को लेकर दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बन पाई। दरअसल दोनों देश इसे अपने पास रखना चाहते थे, ऐसे में तत्कालीन ‘गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स’ के कमांडेंट और उनके डिप्टी ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक सिक्के का सहारा लिया। टॉस भारत ने जीता और इस तरह की रॉयल बग्घी भारत के हिस्से में आई गई।
अब आप सोच रहे होगें की आखिर इस बग्घी में ऐसा क्या है जिसे दोनों देश अपने पास रखना चाहते थे? तो आपको बता दें, इस बग्घी में सोने के पानी की परत चढ़ी है। घोड़े से खींची जाने वाली ये बग्घी अंग्रेजों के शासनकाल में वायसराय को मिली थी। आजादी से पहले देश के वायसराय इसकी सवारी किया करते थे। आजादी के बाद शाही बग्घी की सवारी राष्ट्रपति खास मौको पर किया करते है। पहली बार इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र डॉ. प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था।
शुरुआती सालों में भारत के राष्ट्रपति सभी सेरेमनी में इसी बग्घी से जाते थे और साथ ही 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन के आसपास भी इसी से चलते थे। धीरे-धीरे सुरक्षा कारणों से इसका इस्तेमाल कम हो गया। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब इसका इस्तेमाल बंद हो गया था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ गाड़ीयो में आने लगे।
हालांकि, 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया। एक बार फिर से बग्घी के इस्तेमाल की परंपरा शुरू हो गई। प्रणब मुखर्जी बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचे थे। इसके बाद से अब निरंतर इस प्रकिया को निर्वाह किया जा रहा है। वहीं इस बग्घी को खीचने के लिए खास घोड़े चुने जाते हैं। उस समय 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े इसे खींचा करते थे लेकिन अब इसमें चार घोड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है।