150 साल पुराना है यह मंदिर मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में स्थित है। बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है। यहां पर मौजूद चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक है। बताया जाता है कि सालों से माता के मंदिर में शाम होते ही भालुओं का आना शुरू हो जाता है। हर शाम आरती के समय भालू का पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है। माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है। भालुओं की भक्ति देखकर यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं।
माता की प्रतिमा की परिक्रमा करता है भालुआें का परिवार
भालुओं का पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में किसी पालतू जानवर की तरह आते हैं और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आराम से चले जाते हैं।
भालुओं का पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में किसी पालतू जानवर की तरह आते हैं और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आराम से चले जाते हैं।
लोग कहते हैं जामवंत का परिवार
स्थानीय लोगों की मानें तो ये भालू कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। गांववाले भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं। जानकारों की मानें तो माता के मंदिर में भालुओं का इस तरह से रोज आना हैरानी की बात है। क्योंकि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो वह हमला कर देते हैं। गांववालों के मुताबिक, चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था। यहां कई साधु-संत रहते थे। तंत्र साधना करने वालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया।
स्थानीय लोगों की मानें तो ये भालू कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। गांववाले भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं। जानकारों की मानें तो माता के मंदिर में भालुओं का इस तरह से रोज आना हैरानी की बात है। क्योंकि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो वह हमला कर देते हैं। गांववालों के मुताबिक, चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था। यहां कई साधु-संत रहते थे। तंत्र साधना करने वालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया।