डॉग को समझा था मरा लेकिन वो कब्र खोदकर वापस आ गया, जानें कैसे हुआ ये सब कुत्तों से है विशेष लगाव मेरी ओलिवर को कुत्तों से गहरा लगाव है। इन्हें विषय बनाकर उन्होंने कई चर्चित कविताएं लिखी हैं। वे कहती भी हैं ‘कुत्ते स्वयं किसी कविता की तरह होते हैं … वे न सिर्फ हमारे प्रति समर्पित होते हैं बल्कि भीगी रातों को, चंद्रमा को और घास में बसी हुई खरगोश की गंध को भी समर्पित होते हैं। यहां तक कि खुद के यहां-वहां उछलते बदन के प्रति भी। ‘2013 में पेंगुइन से प्रकाशित ‘डॉग सॉन्गस’ कुत्तों के साथ उनके गहरे भावनात्मक रिश्तों को परिभाषित करने वाला बेहद लोकप्रिय संकलन हैं।
समंदर में 220 किलोमीटर तक तैर गया ये डॉगी, कर्मचारियों ने बचाई जान मिल चुके हैं कई पुरस्कार मैरी को नेशनल बुक पुरस्कार और पुलित्जर पुरस्कार सहित अनेक सम्मान मिल चुके हैं। अब तक उनके तीस के करीब कविता संकलन और कुछ निबंध संग्रह छप चुके हैं। यहां उनकी ऐसी ही कुछ कविताएं पढ़ें। इन्हें यादवेंद्र ने अनुवाद किया है।
मेरी ओलिवर की कविताएं
कुत्ता
कोई कुत्ता आपको नहीं बताएगा कि दुनिया भर में सूंघ सूंघकर वह क्या जानता समझता है … पर उसको ऐसा करते देखकर आपको यह पक्के तौर पर समझ आ जाता है कि आप लगभग नासमझ हैं। ****
स्कूल
तुम छोटे से जंगली प्राणी हो जिसको कभी स्कूल में दाखिल नहीं कराया गया मैं कहती हूं बैठो- और तुम हो कि उछल पड़ते हो मैं कहती हूं यहां आओ और तुम रेत में कुलांचे भरते हुए भाग जाते हो मरी हुई मछली को उछाल-उछाल के खेलने लगते हो
और अपनी गर्दन में भर लेते हो उसकी सड़ैली गंध …. यह गर्मी का मौसम है एक नन्हें से कुत्ते के पास आखिर ऐसे कितने मौसम होते हैं ? दौड़ो पर्सी दौड़ो
हमारा स्कूल यही है… ****
कुत्ते कितने मोहक
तुम्हें कैसा लग रहा है, पर्सी? रेत पर बैठे हुए मैं चांद को उगते निहारने आई हूं आज पूरा पूरा खिला है चांद इसी लिए हमदोनों आज इसे देखने निकले हैं।
और चांद निकलता है इतना खूबसूरत कि मैं खुशी से बेकाबू होकर थरथराने लगती हूं टाइम और स्थान के बारे में विचारने लगती हूं
और चांद निकलता है इतना खूबसूरत कि मैं खुशी से बेकाबू होकर थरथराने लगती हूं टाइम और स्थान के बारे में विचारने लगती हूं
इनके सन्दर्भ में अपने आपको परखती हूं स्वर्ग के विस्तार में रत्ती भर भी नहीं…
हम बैठ जाते हैं, फिर सोचती हूं कितनी खुशनसीब हूं कि निहारने को मिली चांद की मुकम्मल खूबसूरती
हम बैठ जाते हैं, फिर सोचती हूं कितनी खुशनसीब हूं कि निहारने को मिली चांद की मुकम्मल खूबसूरती
और ऐसी दुनिया जिसे प्यार करने को मिले वह भला क्यों न हो जाए मालामाल…
इधर पर्सी है कि झुकता जाता है मेरे ऊपर नजरें लगातार टिकाए हुए मेरे चेहरे पर
इधर पर्सी है कि झुकता जाता है मेरे ऊपर नजरें लगातार टिकाए हुए मेरे चेहरे पर
उसको लगता है मैं उतनी ही अनूठी अजूबी हूं जैसे है आसमान में खिला हुआ चंद्रमा… *** रात में नन्हें कुत्ते की बतकही वह अपने गाल सटाता है मेरे गाल से
और निकालता है हल्की पर अर्थपूर्ण आवाज और जब मैं जागती हूं या जागने को होती हूं वह उल्ट पुलट जाता है चारों पंजे हवा में ऊपर और आंखें काली जोश से भरी हुई (उत्कट)…
‘बोलो, मुझे करती हो प्यार’, वह बोलता है ‘एक बार फिर से बोलो’ इस से ज्यादा प्यारी बात और कुछ हो सकती है? एक नहीं दो नहीं बार बार वह पूछता ही रहता है मुझसे
और मुझे जवाब देना पड़ता है… हर कुत्ते की एक ही कहानी मेरा बिस्तर… बिलकुल निजी मेरा है और यह है भी पूरा पूरा मेरी कद काठी के हिसाब का कई बार मैं सोना पसंद करता हूं अकेला
सपने लिए हुए अपनी आंखों में। पर ये सपने कई बार काले हिंसक और डरावने होते हैं और बीच रात मैं जग जाता हूं… थर-थर कांपने लगता हूं ऐसा क्यों होता है कारण भी पता नहीं चलता
और आंखों से नींद एकदम से उड़ जाती है घंटों का फिसलना मालूम नहीं पड़ता। जब ऐसा होता है मैं बिस्तर पर उछल कर चढ़ जाता हूं देखता हूं तुम्हारे चेहरे पर चमक रही है चांदनी
मुझे समझने में देर नहीं लगती कि सुबह अब होने ही वाली है…
हर किसी को लगता है मिल जाए कोई महफूज़ जगह। ***
हर किसी को लगता है मिल जाए कोई महफूज़ जगह। ***