patrika.com आपको बता रहा है सम्राट अशोक की प्रेम कहानी, जिन्होंने कई पल विदिशा में बिताए थे।
अपने युद्ध कौशल से लोहा मनवाने वाले सम्राट अशोक जब भोपाल के पास स्थित विदिशा आए तो करीब 20 साल के थे, तब यहां की नवयौवना शाक्यवंशी साहूकार की बेटी देवी से उनके नैन मिल गए और पहली ही नजर में वे अपना दिल हार बैठे।
विदिशा के बाग-बगीचों, नदी का किनारा तब अशोक और देवी के प्रणय स्थली बन गए थे। अशोक ने यहीं पर देवी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। इसी स्थान पर अशोका द ग्रेट की हो गयी थी विदिशा की सुंदरी। इस तरह विदिशा सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र तथा बिन्दुसार के बेटे सम्राट अशोक की ससुराल भी रही है। यही कारण है कि आज भी विदिशा में आगमन के समय कई बार सुनने को मिलता है कि सम्राट अशोक की ससुराल में आपका स्वागत है।
उज्जैन के राजप्रतिनिधि बने थे अशोक
युवराज अशोक को उनके पिता बिन्दुसार ने 18 वर्ष की आयु में उज्जैन का राजप्रतिनिधि बनाया था। कुछ समय बाद ही पाटलिपुत्र से उज्जैन जाते समय युवराज अशोक बैसनगर (विदिशा) में रुके थे। यहां से गुजरते समय उनकी नजर यहां की सुंदरी देवी पर पड़ी थी और पहली नजर में ही उन्हें प्यार हो गया और फिर अशोक ने देवी से मेलजोल बढ़ाया था।
अशोका से देवी ने ले लिया था ये वचन
अशोक के प्रस्ताव पर देवी ने उनसे विवाह कर लिया, लेकिन उन्होंने अपने पति अशोक से आजीवन विदिशा में ही रहने का वचन ले लिया। अशोक ने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए वचन दिया और दोनों ने उसे निभाया भी। देवी कभी पाटलिपुत्र नहीं गईं। बाद में अशोक सम्राट बन गए, लेकिन देवी ने अपना वचन नहीं तोड़ा, सम्राट की रानी होते हुए भी उन्होंने विदिशा में ही पूरा जीवन बिताया।
एक पुत्र और एक पुत्री को दिया जन्म
सम्राट अशोक और देवी के एक पुत्र महेन्द्र और एक पुत्री संघमित्रा हुए थे। देवी भगवान बुद्ध की अनुयायी थीं। महेन्द्र और संघमित्रा भी बुद्ध की अनन्य भक्त थीं। अशोक अपने दोनों बच्चों को पाटलिपुत्र ले गए, लेकिन संघमित्रा यहीं रहीं। सम्राट अशोक के शासनकाल के 30वें वर्ष 239 ईसा पूर्व में विदिशा में ही देवी की मृत्यु हो गई थी।
सांची में आखिरी बार मिली थीं संघमित्रा
सम्राट अशोक और देवी के साथ ही उनके बच्चे महेन्द्र और संघमित्रा का नाम भी इतिहास में अमर हो गया। महेन्द्र के साथ-साथ संघमित्रा ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। जब एक बार महेन्द्र बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका गए तो वहां की रानी अनुला ने संसार से विरक्त होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने की इच्छा जताई। लेकिन महेन्द्र ने वहां के राजा को समझाया कि नियमानुसार कोई पुरुष भिक्षु महिला को दीक्षित नहीं कर सकता। तब इस कार्य के लिए भारत से महाविदुषी संघमित्रा को बुलवाया गया और बोधिवृक्ष की शाखा सहित संघमित्रा को श्रीलंका भेजने की तैयारी हुई।
सम्राट अशोक ने अपनी पुत्री को विदा कर दिया। भिक्षु-भिक्षुणियों के साथ संघमित्रा तपस्विनी वेश में पाटलिपुत्र से अपनी मां के नगर विदिशा पहुंची। यहां देवी और संघमित्रा का अंतिम मिलन हुआ। देवी ने वेदिसगिरी (विदिशा के पास सांची की पहाड़ी) पर संघमित्रा का अंतिम अभिवादन किया। संघमित्रा बोधिवृक्ष के साथ संघमित्रा पहुंची और रानी अनुला समेत करीब 1 हजार महिलाओं को वहां दीक्षित किया। दोनों भाई-बहन जीवन पर्यन्त लंकावासियों को भगवान बुद्ध का संदेश सुनाते रहे। वे भारत से एक बार गए तो फिर वापस नहीं लौटे।