यह मानोरा गांव (manora) मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में हैं। इस छोटे से गांव में हर साल लाखों लोग रथ यात्रा में भगवान के दर्शन करने उमड़ते हैं, इस बार हाथरस के हादसे से सबक लेते हुए जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर सुरक्षा और सतर्कता का पूरा ध्यान रखा गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं मध्य प्रदेश के मानोरा जिले में भगवान जगन्नाथ के साक्षात प्रकट होने की कहानी.. अगर नहीं तो जरूर पढे़ं ये खबर…
300 साल से निभा रहे परंपरा
विदिशा जिले के मानोरा में तीन सौ साल पुराना भगवान जगदीश का मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां घर-घर में सभी जाति-धर्म के लोग एकजुट होते हैं और भगवान जगन्नाथ का रथ खींचते हैं। इस तरह मिलजुलकर इस उत्सव को मनाया जाता है। मान्यता है कि यहां रथ यात्रा वाले दिन भगवान जगन्नाथ थोड़ी देर के लिए जगन्नाथ पुरी से निकलकर खुद अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए मानोरा आते हैं। जगन्नाथ पुरी में आधिकारिक घोषणा की जाती है कि भगवान जगन्नाथ मानोरा पहुंच गए हैं। इसके बाद मनोरा में खुशियों का माहौल बन जाता है और यहां भी वैसी ही रथ यात्रा शुरू हो जाती है, जैसी पुरी में आयोजित की जाती है।
भगवान जगन्नाथ ने भक्त को दिया था वचन
मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रामनाथ सिंह बताते हैं कि यह मंदिर भगवान के भक्त और मानोरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का प्रतीक है। तरफदार दंपती भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चल पड़े थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मध्य प्रदेश में स्थित उनके घर मानोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दे दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने के लिए हर साल आषाढ़ सुदी दूज को रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश मानोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकल जाते हैं, उनका हाल जानते हैं।ऐसे मिलते हैं भगवान के मानोरा पहुंचने के संकेत
मंदिर के मुख्य पुजारी भगवती दास बताते हैं कि रथयात्रा से एक दिन पहले शाम को जब आरती के बाद भोग लगाकर भगवान को शयन कराया जाता है, तब मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। खास बात ये कि दूसरे दिन सुबह जब मंदिर पहुंचते हैं तो पट अपने आप थोड़े से खुले मिलते हैं। जब रथ पर भगवान को सवार कराया जाता है तो अपने आप उसमें कंपन्न होता है या फिर वह खुद ही आगे बढ़ना शुरू हो जाता है। इन गतिविधियों को भगवान जगन्नाथ के मानोरा आगमन का प्रतीक माना जाता है। वहीं मुख्य पुजारी भगवती दास के मुताबिक उड़ीसा की पुरी में भी पंडा रथयात्रा के दौरान जब वहां भगवान का रथ ठिठककर रुकता है तो घोषणा की जाती है कि भगवान मानोरा पधार गए हैं।