माता अन्नपूर्णा का दरबार बेहद जगता पीठ है। खुद महादेव यहां पर माता से अन्न की भिक्षा मांगने आये थे। मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी ने बताया कि मान्यता के अनुसार माता अन्नपूर्णा का धान से श्रृंगार किया जाता है। दिन भर भक्त माता के दर्शन करते हैं। इसके बाद धान को प्रसाद के रुप में भक्तों में बांटा जाता है। मां के प्रसाद के अपने खेत, भंडार या अन्न क्षेत्र में रखने से व्यक्ति को जीवन भर अन्न की कमी नहीं रहती है। 17 दिनों तक चलने वाले महाव्रत का उद्यापन भी हुआ है। किसी भक्त ने मंदिर की 51 व किसी ने 501 फेरी लगा कर मां का अ आशीर्वाद मांगा है। मंदिर के महंत ने बताया कि 17 दिन, 17 गाठ और 17 धागे का यह कठिन व्रत 17 नवम्बर से आरंभ हुआ था। व्रती को एक टाइम एक अन्न का आहार लेना पड़ता है और शुद्ध होकर माता की अराधना करती होती है। इस व्रत में नमक का सेवन निषेध होता है। 17 दिन महाव्रत करने वाले की सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
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माता अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने के लिए राजा ने सबसे पहले रखा था व्रत
इस महाव्रत की कहानी बेहद दिलचस्प है। हजारों साल पहले काशी के राजा दिवोदास के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था। जनता में हाहाकार मच गया था। राजा दिवोदास ने धनंजय को कहा कि अकाल समाप्त कराना है तो माता अन्नपूर्णा का प्रसन्न करना होगा। इसके बाद धनंजय ने 17 दिन तक कठिव व्रत किया था जिसके बाद मां अन्नपूर्णा ने दर्शन देकर आशीर्वाद दिया था इसके बाद से आज भी यह महाव्रत रखा जाता है।
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इस महाव्रत की कहानी बेहद दिलचस्प है। हजारों साल पहले काशी के राजा दिवोदास के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था। जनता में हाहाकार मच गया था। राजा दिवोदास ने धनंजय को कहा कि अकाल समाप्त कराना है तो माता अन्नपूर्णा का प्रसन्न करना होगा। इसके बाद धनंजय ने 17 दिन तक कठिव व्रत किया था जिसके बाद मां अन्नपूर्णा ने दर्शन देकर आशीर्वाद दिया था इसके बाद से आज भी यह महाव्रत रखा जाता है।
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