वाराणसी

मुस्लिम पक्षकार क्यों चाहते हैं 1991 एक्ट को लागू कराना, क्या कनेक्शन है काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और शिवलिंग…

ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई के बीच मुस्लिम पक्ष की ओर से 1991 एक्ट को लागू कराने की मांग उठ रही है। ऐसे में इस कानून की एबीसीडी समझना जरूरी है जिसकी आधारशिला 1991 में पड़ी थी।

वाराणसीMay 18, 2022 / 03:23 pm

Karishma Lalwani

Masjid or Shivling

Gyanvapi Case: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट के आदेश पर हुए सर्वे के बाद मंगलवार 17 मई को रिपोर्ट पेश की गई। मस्जिद में सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने और वहां पर उस पूरे क्षेत्र को सील करने की जानकारी दी गई। दोनों पक्षों ने अपनी दलीलों की सबूत के लिए अदालत से मोहलत मांगी है। 20 मई को मामले की अगली सुनवाई होगी। वहीं, दीवार तोड़ने वाली याचिका पर कल सुनवाई होगी। इस बीच वाराणसी सिविल कोर्ट ने कमिश्नर अजय मिश्रा को हटा दिया है। दावा किया गया है कि अजय मिश्रा के सहयोगी आरपी सिंह मीडिया में जानकारी लीक कर रहे थे। मुस्लिम पक्ष ने भी अजय मिश्रा को हटाए जाने की मांग की थी। वहीं, अजय प्रताप सिंह और विशाल सिंह सर्वे टीम का हिस्सा बने रहेंगे। अब विशाल सिंह कोर्ट में रिपोर्ट जमा करेंगे। रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो दिन का समय दिया गया है। उधर, सुनवाई के बीच मुस्लिम पक्ष की ओर से अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश 1991 के ‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ का उल्लंघन कर रहा है। आखिर क्या है ये कानून और क्यों शिवलिंग मिलने के बाद भी मंदिर बनने के रास्ते में अड़ंगा लगा सकता है।
क्या है ‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’

‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ के तहत देश में 15 अगस्त, 1947 के बाद किसी भी धार्मिक और पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है। कुल मिलाकर, इस एक्ट में कहा गया है कि आजादी के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही रहेगा। ये एक्ट 11 जुलाई 1991 को लागू किया गया था।
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तो क्या काशी-मथुरा पर काम नहीं करेगा ये एक्ट?

‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 4 (1) में कहा गया है कि कोई भी धार्मिक स्थल 15 अगस्त, 1947 को जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था, वो भविष्य में भी वैसी और उसी समुदाय का रहेगा। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें 100 साल से ज्यादा पुरानी हैं, उन पर ये कानून लागू नहीं होगा। 1991 एक्ट के तहत ही मुस्लिम पक्ष और कई सियासी नेताओं ने मस्जिद के सर्वेक्षण पर आपत्ति जताई है और पूजा स्थल (विशेष अधिनियम), 1991 और इसकी धारा 4 का हवाला देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है।
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किसने किया लागू

‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ 1991 में कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार लाई थी। तब बीजेपी ने इस कानून का विरोध भी किया था। हालांकि, विरोध के बाद भी ये एक्ट पास हो गया। बता दें कि एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि ये कानून देश के बाकी समुदायों हिंदू, जैन, सिख और बौद्धों के संवैधानिक अधिकार छीनता है। उपाध्याय के मुताबिक, ये कानून जिन धार्मिक स्थलों को विदेशी आक्रांतओं ने तोड़ा उन्हें वापस पाने के सारे रास्ते बंद करता है।
क्या है पूरा मामला

बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले में 5 महिलाओं ने वाराणसी कोर्ट में श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित पूजा के लिए एक याचिका लगाई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था। 3 दिन तक चले सर्वे में सोमवार को मस्जिद में वजू करने वाली जगह पर 12 फीट का शिवलिंग मिलने का दावा हिंदू पक्ष द्वारा किया जा रहा है। सर्वे की रिपोर्ट 17 मई को कोर्ट में पेश की गई। जहां इसकी सुनवाई के बाद कोर्ट ने शाम 4 बजे तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बीजेपी नेता ने लगाया ओवैसी पर गुमराह करने का आरोप

बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ओवैसी पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर उन्होंने कहा, ‘1991 पूजा स्थल अधिनियम तत्कालीन सरकार द्वारा पारित एक अधिनियम है। मुझे समझ में नहीं आता कि आज की सरकार उस अधिनियम को रद्द क्यों नहीं कर सकती। मैंने इस बारे में बार-बार प्रधानमंत्री को लिखा है कि एक साधारण प्रस्ताव पेश करें कि आप इसे वापस ले रहे हैं। फिर हम इस पर चर्चा करेंगे।’

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