हालांकि राजस्व प्रभारी अधिकारी विनय राय के मुताबिक पुरोहितों से बहुत मामूली शुल्क लिए जाएंगे। घाटों पर साफ-सफाई और उसके रखरखाव व संरक्षण को और बेहतर बनाने के मकसद से यह नई शुल्क व्यवस्था की गई है। गंगा घाटों पर होने वाले धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों पर शुल्क का निर्धारण किया गया है।
उपविधि 2020 की घोषणा के साथ ही अब नगर निगम के घाटों पर सांस्कृतिक आयोजनों के लिए 4000 रुपये जबकि धार्मिक आयोजन के लिए 500 रुपये प्रतिदिन टैक्स चुकाना होगा। घाटों पर किसी सामाजिक कार्य के लिए भी 200 रुपये रोजाना शुल्क देने होंगे। टैक्स की यह शुरुआती दर है जो 1 से लेकर 15 दिन तक के कार्यक्रमों के लिए है। यदि कार्यक्रम 15 दिन से लेकर साल भर तक के होते हैं इसके लिए यह शुल्क बढ़कर 5000 रुपये प्रति दिन हो जाएगा।
साबुन लगाकर नहाने पर 500 रुपये
गंगा के साथ ही नगर निगम ने वरुण के घाटों पर भी यह शुल्क और जुर्माना लागू किया है। इसके तहत साबुन लगाकर नहाने या कपड़ा धोनेे पर 500 रुपये देने होंगे। नदी मैं प्रदूषण करने वालों पर सख्त जुर्माना रखा गया है। इसके तहत घरों या सरकारी प्रतिष्ठानों का पानी नदी में बहाने पर पहली बार में 50,000 और उसके बाद 20,000 रुपये जुर्माना वसूला जाएगा, जबकि कूड़ा फेंकने 2100 रुपये देने होंगे।
नगर निगम के फैसले का विरोध शुरू
वाराणसी नगर निगम के घाटों पर होने वाले कार्यक्रमों पर शुल्क वसूलने के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। कांग्रेस ने पुरोहितों से शुल्क वसूलने को निंदनीय बताया है। कांग्रेस महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने कहा कि नगर निगम केवल राजस्व बढ़ाने की तरकीबें निकालने में व्यस्त है। समाजवादी पार्टी के नेता व पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री मनोज राय धूपचंडी ने कहा है कि बनारसियों के लिए गंगा केवल नदी नहीं बल्कि उनकी रिश्तेदार है। बिना गंगा के बनारसियों के कोई काम नहीं होते। ऐसे में घाट पर मौजूद पुरोहित और पंडों की मदद लेने पर उन पर टैक्स लगाना घोर और अदूरदर्शी और तानाशाही भरा फैसला है। जब आदमी कोरोना महामारी के चलते भयभीत है ऐसे समय में इस तरह के कानून बनाना संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा ने कहा है कि सपा इसका विरोध करेगी। कांग्रेस पार्षद रमजान अली का कहना है कि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 की धारा-540 के अंतर्गत राज्य सरकार को उपविधि बनाने का अधिकार है। लेकिन धारा-541 में 49 उपधाराएं मौजूद हैं, लेकिन घाटों से संबंधित उपविधि बनाने का जिक्र किसी उपधारा में नहीं। है। उन्होंने इसे नगर निगम अधिनियम-1959 के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है।