सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥ अर्थात – जो भगवान भोले शंकर आनंदवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं। जो परमानन्द के निधान और आदि कारण हैं। और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं। मैं ऐसे अनाथों के नाथ काशी पति श्री बाबा विश्वनाथ की शरण में जाता हूँ।
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भगवान भोले शंकर के त्रिशूल पर टिकी है काशी
काशी में भगवान शिव शंकर ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में निवास करते हैं यही वजह से इन्हें काशी विश्वनाथ भी कहा जाता है। देवभूमि माने जाने वाले काशी नगरी गंगा के किनारे भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है। ऐसा कहते हैं कि प्रलय आने पर भी इस स्थान का विनाश नहीं हो सकता।काल भैरव के दर्शन बिना अधूरी है काशी विश्वनाथ की पूजा
शिव और काल भैरव की काशी नगरी अद्भुत है। इसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है। मान्यता है भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की उपासना से पहले बाबा काल भैरव का दर्शन करना जरूरी है। इसके बिना यहां भगवान शिव की पूजा अधूरी है। काल भैरव शिव के गण और देवी पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। यह भी पढ़ें
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साधु-संतों की नगरी है काशी
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध ने बोधगया से ज्ञान प्राप्त कर सबसे पहले काशी में ही अपना पहला प्रवचन और उपदेश दिया था। यहां मौजूद तुलसी घाट पर बैठकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के कई अध्याय और चौपाई लिखे थे। कबीरदास जी ने भी अपना जीवन काशी में ही बिताया है।विवाह के बाद पहली बार काशी आए थे भगवान शिव और देवी पार्वती
फाल्गुन माह की रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव शंकर माता पार्वती का गौना करवाकर पहली बार काशी आए थे। उस समय उनका स्वागत रंग और गुलाल से किया गया था। इस लिए हर साल फाल्गुन माह के एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरी का धूमधाम से गौना करवाया जाता है। यह भी पढ़ें