पंडित नेहरु की पुण्यतिथि पर ‘पत्रिका विशेष’ आवेश तिवारी वाराणसी। “मैं जब तक नेहरु के साथ रही उनको अपने भीतर संचित शक्ति का एक हिस्सा देती रही लेकिन जब मैं उनसे दूर हुई यह मेरे लिए संभव नहीं रहा”।जब श्रद्धा माता उर्फ़ श्याम कला उर्फ़ बच्ची साहिब से सुप्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार और स्तंभकार स्वर्गीय खुशवंत सिंह पंडित नेहरु से उनके रिश्तों के बारे में सवाल पूछ रहे थे तो उनके चेहरे पर कहीं से भी कोई शिकन नजर नहीं आ रहा था। बनारस की गलियों से जयपुर के किले तक एक वक्त देश की सियासत में भूचाल ला देने वाली उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मी श्रद्धा माता जन्म के बाद ही बनारस आ गई फिर बनारस के घाटों से होते हुए दिल्ली की गलियों फिर यूरोप और अंत में जयपुर के हथरोई किले में बस गई यह किलाउन्हें महाराजा सवाई मान सिंह ने उपहार में दिया था। पंडित नेहरु के निजी सचिव ओ पी मथाई ने जब आज से चार दशक पूर्व पंडित नेहरु पर लिखी गई किताब में पंडित नेहरु और श्रद्धा माता के प्रेम संबंधों का उल्लेख किया तो सरकार को उनकी किताब पर पाबंदी लगानी पड़ी। मथाई ने किताब में लिखा था कि श्रद्धा माता से नेहरु का एक पुत्र भी है। बाद में श्रद्धा माता ने इंडिया टुडे को दिए गए एक इंटरव्यू में मथाई को पेरासाईट बताते हुए इन आरोपों को झूठा बताया। श्रद्धा माता ने पंडित नेहरु के खुद के प्रति आकर्षण को स्वीकार करते हुए माना था कि वो सन्यासिन थी इसलिए उन्होंने नेहरु के साथ आगे बढ़ने की सारी संभावनाओं को ख़त्म कर दिया। नेहरु का डियर और श्रद्धा माता का रंज श्रद्धा माता और नेहरु के बीच संबंधों की प्रगाढ़ता और एक दूसरे के प्रति सम्मान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार श्रद्धा माता संविधान की प्रस्तावना में इंडिया की जगह भारत लिखे जाने पर अड़ अनशन पर बैठ गई ,नतीजा यह हुआ कि पंडित नेहरु ने उन्हें मनाने के लिए इस दौरान उन्हें कई पत्र लिखे और उन्हें अनशन तोड़ने को मजबूर किया। श्रद्धा माता का कहना था कि पहले संविधान में इंडिया देट इज भारत लिखा जा रहा था जिसे मैंने भारत देट इज इंडिया करवाया ।एक जगह पंडित नेहरु के लिखे पत्रों का जिक्र करते हुए श्रद्धा माता ने कहा कि एक बार पंडित नेहरु के पत्र में मुझे डियर कहकर संबोधित किया गया था लेकिन जब मैंने पंडित नेहरु से इस पर आपत्ति जाहिर की तो उन्होंने फिर मुझे डियर नहीं लिखा ।हांलाकि उन्होंने स्वीकार किया था कि नेहरु और उनके बीच की दूरी की वजह कुछ लोगों की साजिशें थी। लोग नहीं चाहते थे कि मैं नेहरु की किसी भी तरह से कोई नैतिक मदद करूँ ।आजादी के बाद इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि नेहरु ने श्रद्धा माता के कहने पर ही हिंदी को राष्ट्रभाषा के तौर पर मान्यता दी है जबकि श्रद्धा माता कहती थी कि मैं हमेशा से चाहती थी कि हमारी राष्ट्रभाषा संस्कृत बने। कट्टर हिंदूवादी थी श्रद्धा माता श्रद्धा माता से पंडित नेहरु की पहली मुलाक़ात पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कराई थी। वो कहा करती थी कि पंडित नेहरु अक्सर मुलाकातों के दौरान मेरे विवाह के बारे में पूछा करते थे। मैंने उन्हें बता दिया था कि मैं हिन्दू संस्कृति और रीति रिवाजों का पालन करने वाली महिला हूँ ।उनसे जब खुशवंत सिंह ने पूछा कि क्या आप दोनों के रिश्ते आध्यात्मिक प्रेम से बढ़कर थे?इस पर श्रद्धा माता का जवाब था कि यह बात असत्य है। श्रद्धा माता ने नेहरु के साथ अपनी स्मृतियों का जिक्र करते हुए एक बार कहा था कि पंडित नेहरु मुझसे अक्सर कहा करते थे कि आप हर चीज को हिन्दुओं की दृष्टि से देखती हैं । पंडित और श्रद्धा माता की आखिरी मुलाक़ात जयपुर में ही हुई। बताया जाता है कि 1949 में हिन्दू महासभा के आशुतोष लाहिरी द्वारा वी डी सावरकर को लिखे गए एक पत्र को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इंटरसेप्ट कर लिया था बाद में यह पत्र तत्कालीन गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल तक पहुंचा दिया गया जिसमे लाहिरी ने श्रद्धा माता के साथ नेहरु के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा था कि मुझे लगता है भारत का भाग्य बड़ी शक्तियां निर्धारित कर रही है कौन जानता है कि अगर यह रिश्ता परिपक्व होता है तो नई चीजें सामने आ सकती है”