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वाराणसी

पितृपक्ष शुरू, पिशाचमोचन में ही मिलती है प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु के बाद पितरों को मुक्ति

आज से पितृपक्ष शुरु, काशी के बिना अधूरी है पितरों की मुक्ति

वाराणसीSep 26, 2018 / 09:48 am

sarveshwari Mishra

Pitra Paksha

Pitra Paksha

वाराणसी. पितरों के मुक्ति काशी के बिना अधूरी मानी जाती है। काशी नगरी मोक्ष की नगरी कही जाती है। यह प्रलय काल में भगवान् शिव के त्रिशूल पर विराजित हुआ था और प्रलय में भी सुरक्षित होता है । यहीं से भगवान् शिव ने सृष्टि रचना का प्रारम्भ किया था । कहते हैं यहां जो इंसान अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि यहां प्राण त्यागने वाले मनुष्यों को भी भगवान शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते हैं, मगर जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मौत के शिकार होते हैं, उनके मोक्ष के लिए यहां के पिशाचमोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।
आज पितृपक्ष शुरू, ऐसे मिलती है पितरों को अकाल मृत्यु के बाद मुक्ति
आज से पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है। त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पिशाचमोचन घाट पर लोगों का ताता लग चुका है। काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध के साथ ये मान्यता जुड़ी है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृ पक्ष के दिनों पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है ।
काशी में होती है त्रिपिंडि श्राद्ध, मिलती है पितरों को मुक्ति
पूरे विश्व में काशी घाटों और तीर्थों के लिए जाना जाता है। 12 महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है लेकिन पितृ पक्ष अश्विन माष के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है। इन 15 दिनों को पितरों की मुक्ति का दिन माना जाता है और इन 15 दिनों के अन्दर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है। देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाचमोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है।

काशी पूरे विश्व में घाटों और तीर्थ के लिए जाना जाता है। 12 महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15 -15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है लेकिन आश्विन माष के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है पितृपक्ष। जिसको कि पितरों की मुक्ति का 15 दिन माना जाता है। इन 15 दिनों के अंदर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है। काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध होता है जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है। इस श्राद्ध कार्य में इस विमल तीर्थ पर संस्कृत के श्लोकों के साथ तीन मिटटी के कलश की स्थापना की जाती है। जो काले, लाल और सफेद झंडों से प्रतिकमान होते हैं। प्रेत बाधाएं तीन तरह की मानी जाती हैं। सात्विक, राजस, और तामस। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं। जिसको कि भगवन शंकर, ब्रह्मा, और कृष्ण के प्रतीक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पिशाच मोचन पर श्राद्ध करवाने से अकाल मृत्यु से मरने वाले पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। पिशाच मोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है।

भोले शंकर की नगरी काशी में वैसे तो मणिकर्णिका घाट को मुक्ति की स्थली कहा जाता है लेकिन अपने पितरों की मुक्ति की कामना से पिशाच मोचन कुण्ड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृ पक्ष के महीने में यहां जुटती है। मान्यता है कि जिन पूर्वजों की मृत्य अकाल हुई है वो प्रेत योनि में जाते हैं और उनकी आत्मा भटकती है। उन्हीं की शांति और मोक्ष के लिये यहां तर्पण का कार्य किया जाता है। यहां पिंड दान और तर्पण करने के लिए दूर दृ दूर से लोग आते हैं। यहां पिंड दान करने के बाद ही लोग गया जाते हैं। धार्मिक स्थली पिशाच मोचन के साथ ये मान्यता जुडी हुई है कि यहां का तर्पण का कर्मकांड करने के बाद ही गया में पिंड दान किया जाता है, ताकि पितरों के लिये स्वर्ग का द्वार खुल सके।
पिशाचमोचन कुण्ड के पास स्थित पीपल वृक्ष
इस धार्मिक स्थल का उद्भव गंगा के धरती पर आने से पूर्व हुआ था। इस पिशाचमोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है। यहां स्थित पीपल वृक्ष का भी काफी महत्व है जिससे जुड़ी मान्यता है कि यहां अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है। साथ ही मृतक द्वारा जीवन में लिया गया सभी उधार पेड़ पर सिक्के लगा देने के बाद चुकता मान लिया जाता है। पितृ पक्ष में पितरों को पिंड दान किया जाना अनिवार्य होता है, जिससे सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
अपने पितरों की आत्मा के शांति के लिए बिहार से आए अशोक तिवारी बताते हैं कि ऐसी मान्यता भी है कि जिनकी मृत्य अकाल हुई हो वो प्रेत योनी में जाते है और उनकी आत्मा भटकती रहती है। ऐसे लोगों की आत्मा की शांति के लिए और मोक्ष के लिएं यहां तर्पण का कार्य किया जाता है। गया का भी काफी महत्व है लेकिन जो भी श्राद्ध करने की इच्छा रखता है वो पहले काशी आता है और उसके पश्चात ही गया प्रस्थान करता है।

कहते हैं कि जब पुरखों की आत्माओं का आशीष इंसान को जिंदगी में मिलता है तो उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां बनी रहती हैं। माना जाता है कि आकाश से हमारे पुरखे व धरती पर हमारे बुजुर्ग अपनी दुआओं से हमारे जिंदगी में रोशनी बिखेरते रहते हैं। यही कारण है कि पितरों के श्राद्ध के लिए विधिविधान पूर्वक तर्पण आदि करना सभी के लिए आवश्यक होता है जिससे जीवन सुखमय बना रहे।

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